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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहु जिनवर कल्याणको, एकादशी दिन जाणरे; निष्कामभावथी सेवतां, प्रगट थतुं शुद्ध ज्ञानरे.... महावीर० २ ज्ञान प्रथम दया छे पछी, ज्ञान पछी क्रिया जोयरे; ज्ञान पछी तप प्रगटतुं, ज्ञानथी चारित्र होयरे.... महावीर० ३ शुद्धोपयोगी ज्ञानीने, कर्मनो होय न बंधरे; सर्व करे छतां संवरी, कर्म क्रियामां अबंधरे. . महावीर० ४ एकादशी तप सेवतां, अष्टसिद्धि नवनिधिरे; बुद्धिसागर गुरु सेवतां, क्षायिकलब्धि समृद्धिरे... महावीर० ५ For Private And Personal Use Only पर्युषण पर्व स्तवन सुणजो साजन संत, पजुसण आव्यां रे; तमे पुण्य करो पुण्यवंत, भविक मन भाव्यां रे. वीर जिणेसर अति अलवेसर, वाला मारा परमेसर एम बोले रे; पर्व मांहे पजुसण मोटां, अवर न आवे तस तोले रे. पजुसण. १ चौपद मांहे जेम केशरी मोटो वाला.., खगमां गरुड ते कहीए रे. नदी मांहे जेम गंगा मोटी, नगमां मेरु लहिये रे... पजुसण. २ भूपतिमां भरतेसर भाख्यो वाला.., देव मांहे सुर इंद्र रे. सकल तीरथ मांहे शेत्रुंजो दाख्यो, ग्रह-गणमां जेम चंद्र रे... १९० पजुसण. ३
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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