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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्ट कर्म ते दूर पलाय रे, एथी अङ-सिद्धि अङ-बुद्धि थाय रे; ते कारण सेवो चित्त लाय..................... भवि.६ श्री उदय सागर सूरिराया रे, गुरु शिष्य विवेके ध्याया रे; तस न्याय सागर गुण गाया.................. भवि.७ एकादशी तिथि स्तवन. ढाल-१ जगपति! नायक नेमि जिणंद, द्वारिका नगरी समोसर्या; जगपति! वंदवा कृष्ण नरिंद, जादव कोडशुं परिवर्या.. ....१ जगपति! धी गुण फूल अमूल, भक्ति गुणे माला रची; जगपति! पूजी पूछे कृष्ण, क्षायिक समकित शिवरुचि.......२ जगपति! चारित्र धर्म अशक्त, रक्त आरंभ परिग्रहे; जगपति! मुज आतम उद्धार, कारण तुम विण कोण कहे..३ जगपति! तुम सरिखो मुज नाथ, माथे गाजे गुणनीलो; जगपति! कोइ उपाय बताव, जेम वरे शिववधू कंतलो......४ नरपति! उज्ज्वल मागशिर मास, आराधो एकादशी; नरपति! एकसो ने पचास, कल्याणक तिथि उल्लसी.......५ नरपति! दश क्षेत्रे त्रण काल, चोवीशी त्रीशे मली; नरपति! नेQ जिननां कल्याण, विवरी कहुं आगल वली.....६ १८७ For Private And Personal Use Only
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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