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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मूल नायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्ट द्रव्यशुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे.. भाव भक्तिशुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भवि जन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे. धन. ३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तारा; पतित उद्धारण बिरुद तमारुं, ए तीरथ जग सारा रे..धन.४ संवत अढार त्यासी मास अषाढा, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघमें, खिमा रतन प्रभु प्यारा रे....... धन. ५ सिद्धाचल तीर्थ स्तवन जात्रा नवाणुं करीए विमलगिरि, जात्रा नवाणुं करीए; पूरव नवाणुं वार शत्रुंजय गिरि, ऋषभ जिणंद समोसरीए. कोडि सहस भव पातक तूटे, शत्रुंजा सामो डग भरीये. सात छट्ठ दोय अट्ठम तपस्या, करी चढीये गिरिवरीये. पुण्डरीक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीये. १७१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only . धन. २ .विमल. १ . विमल . २ . विमल . ३ . विमल . ४
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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