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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राग द्वेष भाव कर्म छे, द्रव्यकर्म ग्रहावे; राग द्वेष टळवाथकी, द्रव्य कर्म न आवे. निश्चय शुद्ध चारित्र्थी रागद्वेष टळे छे राजद्वेष टळवा थकी निजलक्ष्मी मळे छे चेतन शुद्ध स्वभावमां, लीनता क्षण थावे; त्यारे सहजानंदनो, अनुभव मन आवे. क्षयोपशमज्ञाने करी, प्रभु श्रेणि चडियो; शुक्ल ध्यान महाशस्त्रथी, मोहसाथे लढियो. जयलक्ष्मी अंगीकरी, नव ऋद्धि पायो; बुद्धिसागर ध्यानथी, प्रभु अंतर आयो. सिद्धाचल तीर्थ स्तवन मनना मनोरथ सवी फळ्या, श्री सिद्धाचल देखी; अनुभव आनंद उछळ्यो, अन्ध श्रद्धा उवेखी. सहजानन्द श्रीनाथजी, विश्वानन्द वखाणो; शत्रुंजय शाश्वतगिर्, त्रण्य भुवननो राणो. मुक्तिराज विजयी सदा, अजरा सुखवासी; विमलाचलने वन्दतां, मटे सकल उदासी. पापी दुरभवी प्राणिया, देखे नहि शुद्धि स्थान; गुरु भक्तिमंत प्राणिया पामे अमृतपान.. १६९ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ ४ ५ ६ 19 मन० १ . मन० २ . मन० ३ . मन० ४
SR No.008902
Book TitleJinandji Bhav Jal Par Utar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaratnasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages292
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size7 MB
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