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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खुशी के मारे उछलने लगता है- पक्षी भी पिंजरे से छूटने पर चहकने लगता है; परन्तु मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जो क्षणिक सुख की लालच में पड़कर सांसारिक बन्धन में फंसा रहना चाहता है ! स्थायी सुख वाले मोक्ष की ओर वह आगे नहीं होता ! चौरासी लाख जीवयोनियों में भटकते हुए जब बहुत अधिक पुण्य का संचय हो जाता है, तभी बहुत मुश्किल से मानवभव मिलता है । मोक्ष की साधना इसी भव में संभव है; अन्यथा पुण्य-पाप का फल भोगने के लिए जीव देवगति, नरकगति और तिर्यंच गतिमें शटल कोक (Shuttle Cock) की तरह इधर-उधर भटकता रहता है । आर्तध्यान और रौद्रध्यान भी वही करता है। यदि मन में अशान्ति हो तो पेट में अजीर्ण हो जाता है, जिससे समस्त शारीरिक रोग पैदा होते हैं । स्वस्थ रहने के लिए मन को सदा शान्त रखना चाहिये । ध्यान रखना चाहिये कि उस में सदा सद्विचार ही भरे रहें । यही उसका सदुपयोग हैं । चौथा हे - धन । इन्द्रियों के लिए विषय-सुख की सामग्री जुटाना धन का दुरुपयोग है और उस से दूसरों की मदद करना बीमारों की चिकित्सा में उसे लगाना धर्मस्थान, प्याऊ, कँआ, सदाव्रत (दानशाला), पाठशाला, छात्रवृत्ति, प्रतियोगिता, पुरस्कार, सद्गन्थ प्रकाशन, सत्संग आदि में उसे खर्च करना उसका सदुपयोग है । इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध कवि गोल्डस्मिथ एक डाक्टर थे; इसलिए रोगियों का इलाज भी किया करते थे। एक दिन कोई महिला अपने बीमार पतिदेव का इलाज कराने के लिए उन्हें घर बुला ले गई । कवि को यह समझने में देर नहीं लगी कि गरीबी से उत्पन्न मानसिक चिन्ता ही उस की बीमारी का मूल कारण है । कवि यह कहते हुए अपने घर लौट गये कि मैं जल्दी ही एक दवा का पैकेट भेजूंगा । उसके सेवन से इन का स्वास्थ्य ठीक हो जायगा । कवि के भेजे हुए पैकेट को जब उस महिला ने खोला तो उस में दस दस स्वर्णमुद्राएँ निकलीं । उन्हें देखकर ही आधी बीमारी गायब हो गई । पति-पत्नी ने मनही-मन कवि की उदारता को प्रणाम किया । इसी प्रकार एक जीवन घटना हजरत अली की है । वे एक दिन किसी मस्जिद में प्रवचन कर रहे थे कि सहसा किसी अरब ने वहाँ आकर गालियों की बरसात कर दी । श्रोता उत्तेजीत होकर उस की पिटाई ५८ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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