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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर के उस पर ताला लगा दिया । फिर फोन कर के दष्ट को पुलिस वाला क हाथ सोंप दिया । इस प्रकार बर्बाद्ध के उपयोग से अपनी जान बचाने में सफलता पाई । दसरा साधन है .. काया । यह नश्वर है- परिवर्तन शील है- निस्सार है और है रोगों का पर । ऐसी काया से दूसरों की सेवा करनी चाहिये। संवा या वेयावत्य को आभ्यन्तर तप का एक भेद माना गया है। यदि काई किगाली दष्ट किसी निर्बल को पीट रहा हो तो अपनी शारीरिक ति का उपयोग कर क हम उसकी रक्षा कर सकते हैं । यही काया का सदपयोग हे । तीसरा साधन है- मन । इस म मनन करने की शक्ति होती है । एक पाश्चात्य विचारक ने लिखा है : निर्णय शीघ्र करा; परन्त दर तक सोच लेने के बाद !" साचन-विचारने का जो कार्य करता है, वह मन है । निर्णय बद्धि करता है। न्यायाधीश के समान; परन्तु वकीलों की तरह पक्ष-विपक्ष में यत्तिया प्रस्तत करने वाला मन है । मन ही इन्द्रियों को विषयों की ओर आकर्षित करता है; इस लिए साधसन्त उसे वश में रखने की शिक्षा देत हैं । कबीर साहब कहते हैं कि मन को ईश्वर की ओर या मोक्ष की ओर मुमाना ही उसका सदुपयोग है : कबिरा माला काठकी कहि समुझावै तोय मन न फिरावे आपणा कहा फिरावै पोय ? माला फेरत जुग गया. मिटा न पन का फेर कर का मन का डारि दै मन का मनका फेर ।। प्राधान शास्त्रकारी ने कहा है : "मन एव मनुष्याणाम् कारण बन्धमोक्षयोः ।।" (बध और माक्षका कारण मनुष्या का मन ही है) यदि किसी जानवर (पश) को बन्धन स मन कर दिया जाय तो वह ५७ For Private And Personal Use Only
SR No.008731
Book TitlePratibodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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