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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छल. किसे श्रेष्ठ तर मानेगें? एक कविने अपना निर्णय दिया है : तन उजला मन साँवला, बगुला कपटी भेख। यातूं तो कागा भला, भीतर बाहर एक॥ चोर भी है तो बुरा, परन्तु विश्वासघात करने वाला उससे कई गुना अधिक बुरा है। माया से मनुष्य एक बार लाभ उठा सकता हैं, बार-बार नहीं। काठ की हंडिया दूसरी बार चूल्हेपर नहीं चढाई जा सकती; क्योंकि पहली बार में ही वह जल जाती है। मित्रता के मूल में क्या होता है ? विश्वास । माया से विश्वास सूख जाता है:माया मित्ताणि नासेइ॥ -दशवैकालिक (माया मित्रों को नष्ट कर देती है।) यह कथन इसीलिए सर्वथा सत्य प्रतीत होता है। छल करने वालों पर और भी अनेक संकट आते हैं; इसलिए उसे छोड़ने की प्रेरणा दी गई है : ___ "व्यसनशत सहायां दूरतो मुञ्च मायाम्।।" सैंकड़ो संकटों की सहायिका माया का त्याग दूर से कर दे। केवल धन हथियाने के लिए की गई माया ही भयंकर नहीं होती, धर्म के लिए भी गई माया भी भयंकर होती है। स्त्री तीर्थकर मल्लिनाथ ने महाबल के भव में मित्रों से छिपाकर (झूठ बोलकर) तप किया था। (करते थे उपवास और कह देते थे आज पेटमें दर्द होने से लंघन किया जा रहा है) इसी माया के दुष्परिणाम से उन्हें नारीरूप में जन्म लेना पड़ा; इसीलिए कहा गया है: धम्मविसएवि सुहुमा माया होई अणत्थाम।। (धर्म के विषय में भी की गई सूक्ष्म माया अनर्थ के लिए होती है।) तत्त्वार्थ सूत्र में लिखा है : माया तैर्यग्योनस्य॥ (माया तिर्यञ्च आयु के बन्ध का कारण है।) यदि कोई पुरुष अगले भव में पशु-पक्षी या स्त्री बनना न चाहता हो तो उसे माया से बचना चाहिये; क्योंकि :माया गइपडिग्धाओ॥ -उत्तराध्ययनसूत्र [माया सुगति का प्रतिघात है (अच्छी गति में बाधा डालने वाली है।)] For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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