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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२. छल सरल स्वभावी भव्यजनो! __ भक्ति, आराधना, पूजा निस्वार्थ होनी चाहिये। (भौतिक) वैभव का जिन्होंने त्याग कर दिया था, उनसे वैभव की याचना का क्या अर्थ है ? वैभव पुण्य का फल है। यदि पूर्वभव में अपने पुण्य पुञ्ज एकत्र किया था, तो इस भव में आपको वैभव की कहीं भी कमी नहीं रहेगी। अगले भव में भी आप वैभव पाना चाहते हैं तो इस भवमें पुण्योपार्जन से आपको कौन रोकता है? परन्तु जहाँ तक वीतराग प्रभु की आराधना और भक्ति का सवाल है, मन्दिर में जाकर उनसे वैभव की प्रार्थना करें-यह उचित नहीं लगता। प्रार्थना (याचना) भी हिन्दू धर्म का शब्द है। जैनधर्म में ईश्वर की स्तुति (प्रशंसा या गुणवर्णन) की जाती है, प्रार्थना नहीं। __ प्रभु की स्तुति करने से- उनके सद्गुणों की प्रशंसा करने से हमें भी उन गुणों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है- यही स्तुति का फल है; परन्तु परम्परानुसार मुँह से स्तुति करते हुए भी लोग मन में प्रार्थना करते हैं। वे मुँह से बोलते हैं :"शान्तिनाथजी! शान्ति करो" और मन में बोलते हैं : “तिल कपास गुड़ महँगा करो!" इस प्रकार वे छल करते हैं । प्रभु को तो वे धोका दे नहीं सकते; परन्तु ऐसा करके अपने आपको वे धोका देते हैं-आत्मवंचना करते हैं। यह कुटिलता है।सरल व्यक्ति ऐसा नहीं करतेः सरल जनों की सरल गति वक्र जनों की वक्र। सीधा जाता तीर ज्यों चक्कर खाता चक्र॥ मन-वचन-कार्य की एकता ही दुष्टों और शिष्टों में भेद करती है :--- मनस्येकं वचस्येकम् कर्मण्येकं महात्मनाम् मनस्यन्यद्वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम्॥ [महात्माओं के जो कुछ मन में होता है, वही वचन में आता है (जैसा वे सोचते हैं, वैसा ही बोलते हैं) और जैसा वचन में होता है, वही कार्य में दिखाई देता है (जैसा वे बोलने हैं, वैसा ही करते है) इससे विपरीत स्वभाव दुरात्माओं का होता है। वे सोचने कुछ और हैं, बोलते कुछ दूसरा हैं और करते कुछ तीसरा ही हैं।] किसी विचारक ने दम्भ को झूठ की पोशाक बताया है। इसका तात्पर्य यह है कि दम्भ के मूल में असत्य रहता है। जो व्यक्ति छल करता है, वह झूठा होता है। उसका विश्वास नहीं किया जा सकता। बगुला और कौआ-ये दोनों पक्षी आपके सामने बैठे हों तो आप इनमें से For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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