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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देने वाला और है, देत रहत दिन-रैन । लोग भरम हम पर करै, ताते नीचे नैन। देने वाला तो कोई दूसरा ( ईश्वर या मेरा भाग्य) है, जो हंमेशा देता रहता है; परन्तु लोग भ्रम से मुझे दाता समझते हैं; इसलिए संकोचवश मेरे नयन नीचे देखने लगते हैं। दान के साथ अभिमान से दूर रहने का यह कितना अच्छा उदाहरण है। सन्त तुलसी ने लिखा है:"दया धर्म का मूल है, पाप - मूल अभिमान ।।" ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम दान धर्म का मूल (कारण) दया है; परन्तु अभिमान पाप का मूल है। यदि दान के साथ अभिमान आ गया तो पुण्य के बदले पाप का ही उपार्जन होने लग जायगा । जो लोग दान से दूर रह कर भी अभिमान से भरे रहते हैं उनकी दशा तो अत्यन्त शोचनीय हो जाती है। एक कवि ने चातक की अन्योक्ति से याचकों को यह बात समझाने की चेष्टा की है कि वे हर आदमी के सामने अपना हाथ फैलायें । ११२ - एक प्यासा चातक था। पानी के लिए वह बार-बार ऊपर बादलों की ओर निहारता, उनसे याचना करता, अपनी व्यथा सुनाता और गिडगिडाता रहता; परन्तु एक-एक करके सारे बादल गर्जना करते हुए बिना जल बरसाये ही आगे बढ़ते गये। उसी समय एक कवि ने उस चातक से कहा: रे रे चातक! सावधानमनसा मित्र ! क्षणं श्रूयताम् अम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेपि न तादृशाः । केचिद् वृष्टिभिरार्द्रयन्ति धरणीम् गर्जन्ति केचिद् वृथा यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वचः ॥ [हे मित्र! चातक! सावधान मन से क्षण-भर सुनो। आसमान में बहुत से - बादल रहते हैं सब ऐसे नही है (जो जलदान करें) कुछ तो बरसातों के द्वारा धरती गीली कर देते हैं और कुछ व्यर्थ ही गर्जना करते है; इसलिए तुम जिस-जिस बादल को देखते हो, उसउस के (सब के) सामने दीन वचन मत कहो ( प्रार्थना के शब्द मत कहो ) ] For Private And Personal Use Only क्योंकि जो कंजूस हैं, उन से धन छूट नहीं सकता। जो स्वभाव से उदार हैं, वे ही दान कर सकते हैं।
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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