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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम . संस्कृत में एक सुभाषित है : त्रिभिर्वर्षस्त्रिनिर्मासै स्त्रिभिः पक्ष स्त्रिभिर्दिनैः। अत्युग्रपुण्यपापानामिहैव लभ्यते फलम्। [अत्यन्त उग्र पुण्य अथवा पाप किया जाय तो इसी भव में उसका अच्छा या बुरा फल तीन वर्षो में, तीन महीनों में, तीन पक्षों (पखवाड़ों) में अथवा तीन दिनों में प्राप्त हो जाता है ।] इसका एक उदाहरण देखिये। मुर्शिदाबाद शहर में बर्तनों का एक व्यापारी था। एक दिन प्रातःकाल आठ बजे उसकी दूकान पर एक जीप आकर खड़ी हुई।जीप की प्लेट पर लिखा था- Govt. of V.I.P Supply Dept. उसमें से एक सूटेड बूटेड अफसर उतरा। उसके साथ एक पट्टेवाला भी उतरा । बर्तन का व्यापारी अफसर और जीप को देखकर बहुत खुश हुआ। व्यापारी से पाँच हजार का प्राइवेट कमीशन ठहरा कर पचास हजार का आर्डर पेश कर दिया गया। व्यापारी ने माल पैक कर के जीप में रखवा दिया। बदले में अफसर ने उसे पचास हजार का चेक दे दिया; परन्तु व्यापारी को कुछ शंका होने से उसने कैश रकम माँगी। अफसर ने कहा :- "देखिये, अभी साढे नौ बज रहे हैं। एक घंटे बाद साढे दस बजे बैंक खुल जायगा। मैं वहाँ से रकम कैश निकलवाकर ग्यारह बजे आपको हाथोंहाथ दे जाऊँगा। तब तक हमारा यह पट्टेवाला यहीं बैठा रहेगा। सरकारी काम है। आप बिल्कुल निश्चिन्त रहिये।'' ऐसा कहकर अफसर वहाँ से चलता बना। व्यापारी ने पट्टेवाले को बैट जाने का इशारा किया। वह बैठ गया। व्यापारी इन्तजार करने लगा|घड़ी में ग्यारह बज गए। फिर बारह बजे। व्यापारी की नजर बार-बार सड़क की ओर उठती रही; किन्तु वह अफसर नहीं आया | व्यापारी भोजन करने के लिए भी घर पर नहीं गया। सोचा, यदि अफसर आया और मैं दूकान पर उपस्थित न रहा तो वह कैश किसे देगा? मेरे आने की वह प्रतीक्षा नहीं करेगा। वह कैश अपने साथ लेकर लौट गया तो मैं उस अफसर को कहाँ ढूँढूँगा ? इसलिए कहीं न जाना ही ठीक प्रतीक्षा करते-करते दो बजी, तीन भी बज गए! अब व्यापारी का माथा ठनका-ढाई बजे तो बैंक में लेन-देन बन्द हो जाता है। तीन बजने पर भी अफसर नहीं आया तो अब क्या आयगा? पट्टेवाला बैठा था। दूकानदार ने पूछा :- “आपका ऑफिस किधर है ? साहब कहाँ रहते हैं ? उनके बँगले का फोन नम्बर क्या है ?" पट्टेवाले ने कहा :- “सेठजी! मुझे उनके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है।" सेठजी :- “क्यो नहीं मालूम ? क्या तू उनका चपरासी नहीं है ?" चपरासी :- "शेठजी! मैं तो नौकरी की तलाश में भटक रहा था। जीपवाले साहब For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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