SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हुए गहने ज़रूर पहनकर जाना; अन्यथा घर की पोजीशन डूब जायगी।" जाटनी : "मैं कोई किसी की शादी में तो जा नहीं रही हूँ कि नये कपड़े पहिनू और गहने भी पहिनू । बीमारी में माँकी सेवा करने जाना है मुझे और म्हें अपनी पोजीशन की चिन्ता लगी है। मैं तो केवल सादे कपड़े पहिनकर जाऊँगी और गहना तो एक भी नहीं ले जाऊँगी।" ___जाट : जैसी तुम्हारी इच्छा हो, वैसा करो; परन्तु जल्दी मत करो।" जाटनी : "मेरी माँ बीमार है और फिर भी मैं जल्दी न करू ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं तो जैसे कपड़े पहिन रखे हैं, उन्हीं में और इसी समय जा रही हूँ ।” . ऐसा कहकर जाटनी जैसी खड़ी थी, वैसी ही घर से बाहर निकल गई । जाट भी उसे पहँचाने के लिए उसके पीछे-पीछे गया । रास्ते में एक नदी पड़ी। उसमें बाढ़ आ रही थी । जाटने कहा : "तुम्हें तैरना नहीं आता; इसलिए जब तक नदी की बाढ़ उतर न जाय तब तक यहीं ठहरो।" जाटनी : “मैं तो एक पलभर भी यहाँ नहीं ठहर सकती। ठहरना ही होता तो मैं घर पर न ठहर जाती ? तुम कहते हो कि मुझे तैरना नहीं आता; किन्तु बैल को तो तैरना प्राता है । मैं बैलको बाढ में उतारकर उसकी पूछ पकड़ लगी और बैलके साथ ही साथ उस पार चली जाऊँगी ?' जाट : "हाँ, समझ गया । मैं तुम्हारे लिए कहीं से एक बैल पकड़कर ले आता हूँ; परन्तु मैं भी तुम्हारे साथ For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy