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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसकी इस आदत से जाट को दूसरों के सामने हमेशा शमिन्दा होना पड़ता था। किसी मेहमान के आने पर जब जाट कहता कि एकाध अच्छी-सी मिठाई बना देना तो वह साधारण भोजन ही बनाती-कहा जाता कि रोटियाँ ज़रा ठीक चुपड़ना तो वह रूखी रोटियाँ ही परोस देती और यदि कह दिया जाता कि आज तबीयत कुछ नरम है, इसलिए हल्का भोजन बनाना तो वह मालताल एवं पकौड़े या दहीबड़े बना डालती ! वह पढ़ी-लिखी तो थी नहीं। बार-बार समझाने का भी उस पर कोई असर नहीं होता था। अन्त में रोज़-रोज़ की खटपट से तंग आकर हमेशा के लिए अपने रास्ते का काँटा साफ करने की उसने एक योजना बनाई। उसके अनुसार डाकिये को एक चिट्ठी स्वयं लिखकर लिफाफे में बन्द करके दे दी और कहा कि इसे घर पर दे जाना। बरसात के दिन थे। पति-पत्नी दोनों चूल्हे के पास बैठकर भट्ट सेक-सेक कर खा रहे थे कि इतने में डाकियेने आवाज़ लगाकर लिफाफा दिया। जाटने लिफाफा खोलकर पढ़ा और कहा : "चिठ्ठी तुम्हारे पीहर से आई है, तुम्हारी माँ बीमार है। मिलने को बुलाया है; किन्तु मौसम खराब है-रास्ते में कीचड़ है-बीच में नदीनाले पड़ते हैं; इसलिए तुम अभी जानेका बिचार मत करना।" पत्नी : “वाह ! माँ बिमार है और मैं न जाऊं? तुम्हारी माँ बीमार होती तो क्या तुम नहीं जाते ? पता नहीं, उसकी हालत कैसी हो रही होगी! मैं तो अवश्य जाऊंगी।" ___ जाट : “तुम जाना चाहती हो तो जाओ; लेकिन सादी पोशाक में मत जाना । नये कपड़े और सोने-चांदी के बनवाये For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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