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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ ने पूरी शक्ति एक ही गड्ढे में लगा दी होती तो सौ डेढ़ सौ हाथ गहराई पर ही पानी निकल आता । यही बात साधना के क्षेत्र में है। किसी एक लक्ष्य पर मनको केन्द्रित करके पूरी शक्ति से उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वाला ही सफल होता है। शर्त यही है कि उस प्रयत्न में भावना को भी शामिल कर लिया जाय । प्रभु महावीर ने एक सूत्र दिया है : जे आसवा ते परिस्सवा । जे परिस्सवा ते प्रासवा ॥ -प्राचारांगसत्र [जो आस्रवहैं, वे ही संवर हैं और जो संवर हैं वे ही आस्रव हैं] इसका तात्पर्य यह है कि भावना की विशेषता के कारण जो कर्मवन्ध के स्थान हैं, वे ही कर्मनिर्जरा के स्थान बन जाते हैं और जो कर्मनिर्जरा के स्थान हैं, वे ही कर्मबन्ध के स्थान बन जाते हैं। एक छोटे-से उदाहरण द्वारा मैं इस बात की पुष्टि करने का प्रयत्न करता हूँ : दो मित्र थे-राम और श्याम । एक दिन राम ने श्याम से कहा कि आज नगर के विशाल मन्दिर में एक पहँचे हुए महात्मा का धार्मिक प्रवचन होने वाला है। सुनने चलते हैं। श्याम ने कहा : "नहीं मित्र ! क्या लाभ है प्रवचनों से ? धर्मध्यान, भक्ति, उपदेशश्रवण, शास्त्रों का अध्ययन-ये तो सारे वृद्धावस्था के काम हैं। हम तो किशोर हैं। अभी तो हमारे खेलने-खाने के दिन हैं । अमुक टॉकीज में एक नई For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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