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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ दी जाती थी, उसे बन्द कराने के लिए जनता को समझाने की युक्ति भी कुमारपाल को उन्हों ने समझा दी थी। यह बलि नवरात्रि के अवसर पर आश्विन मास में दी जाती थी। अनेक पाडों और बकरों को धर्म के नाम पर कण्टकेश्वरी देवी के मन्दिर में काट दिया जाता था। आचार्यश्री द्वारा सुझाई गई युक्ति के अनुसार महाराज ने बलि के लिए एकत्र समस्त पशुओं को उसी मन्दिर में बन्द करके अपने हाथ से द्वार पर ताला लगा दिया। फिर चार-पाँच घंटे बाद ताला खोल कर पशुओं को मुक्त करते हुए वे लोगों से बोले : “भाइयो! यह देवी किसी पशुको खाना नहीं चाहती, अन्यथा इतनी लम्बी अवधि में एक-दो को तो अवश्य खा जाती। देवी को जगदम्बा कहते हैं। वह सब प्राणियों की माता है। कोई मां अपने बच्चों को कभी खाना नहीं चाहती। जितने पशु हमने इस मन्दिर में बन्द किये थे, उतने ही सुरक्षित रूप से बाहर निकल आये। किसी की एक पूछ तक गायब नहीं हुई; इसलिए आज से यहां बलि नहीं दी जायगी-कभी नहीं।" इस प्रकार वहाँ सदा के लिए पशुबलि बन्द हो गई। धनपाल शोमनमुनि के सत्संग से जैनधर्मावलम्बी बन गये थे। वे राजा मुंज के मन्त्री थे, कुशल कवि भी थे। एक दिन मुज जंगल में शिकार खेलने गये। उन्होंने धनपाल को भी साथ ले लिया : वहाँ हरिणों को उछलते हुए और शकरों को पंजे से ज़मीन खोदते हुए देख कर सहज ही पूछा : किं कारणं नु धनपाल ! मगा यदेते व्योम्न्युत्पतन्ति विलिखन्ति भुवं वराहा: ? For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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