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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ को उड़ा कर नहीं ले जाती ! क्यों ? इस डरसे कि यह कहीं मुझसे भी कुछ माँग न बैठे ! ऐसी आशंका रहती है उसे] याचक से कौए को अच्छा बताते हुए कहा गया है : काक आह्वयते काकान याचको न तु याचकम् । काकयाचकयोमध्ये वरं काको न याचकः ।। [कौआ (अकेला कुछ नहीं खाता । वह काँव-काव करके दूसरे) कौओं को बुलाता है, परन्तु भिखारी दूसरे भिखारीयों को नहीं बुलाता। इस से सिद्ध होता है कि भिखारियों से कौमा श्रेष्ठ होता है] ___ याचकों का मन याचना से पहले किस प्रकार आन्दोलित होता है ? इसका वर्णन करते हुए कहा गया है : पुरत: प्रेरयत्याशा लज्जा पृष्ठावलम्बिनी । ततो लज्जाशयोर्मध्ये दोलायत्यर्थिनां मनः ॥ [आशा कहती है-"आगे बढ़ो" और लज्जा कहती है-"पीछे हटो।" इस प्रकार लज्जा और आशा के बीच याचकों का मन झूलता रहता है] __एक धनवान् से मिलने के लिए उसका कोई मित्र उसके घर आया। कुशल प्रश्न के बाद उसने पुछा : "आपका दाहिना हाथ अधिक महत्त्वपर्ण है। हर काम में पहले वही उठता है-चाहे लेखन हो या दान, सफाई हो या स्नान, फिर भी क्या कारण है कि आपने सोनेकी यह रत्नजटित अंगूठी दाहिने हाथ की उँगली को न पहिना कर बाएँ हाथ की उँगली को पहनाई है ?" धनवान् ने उत्तर दिया : "मित्रवर ! दाहिना हाथ बड़ा है, इसीलिए तो उसने स्वयं अँगूठी न पहिन कर छोटे को For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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