SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ www.kobatirth.org आदमी ने पूछा : " आप सब कौन हैं ? कहाँ रहती हैं ? परिचय देने की कृपा करें ।" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक बोली : "मेरा नाम बुद्धि है । मैं मनुष्य के मस्तिष्क में रहती हूँ ।" दूसरी बोली : "मेरा नाम लज्जा है । मैं मनुष्य की आँखों में रहती हूँ ।" तीसरी ने कहा : "मेरा नाम है हिम्मत । मैं मनुष्य के हृदय में रहती हूँ ।" चौथी ने कहा : "मेरा नाम तन्दुरुस्ती है । मैं मनुष्य के पेट में रहती हूँ ।" उन्होंने सड़क पर पहुँचने की दिशा बता दी । कुछ श्रागे बढ़ने पर उसे चार डाकू मिले । परिचय पूछने पर क्रमश: उन्होंने कहा - एक --- “मैं क्रोध हूँ । मस्तिष्क में रहता हूँ ।" “मैं लोभ हूँ। आँखों में रहता हूँ तीन - “मैं भय हूँ । हृदय में रहता हूँ ।" चार “मैं रोग हूँ | पेट में रहता हूँ ।" मनुष्य ने कहा : " लेकिन मनुष्य के मस्तिष्क आदि स्थानों में तो बुद्धि आदि का निवास है न ? " वे बोले : “ बात सही है; परन्तु ज्यों ही हम लोगों को देखती हैं, वे सब भाग जाती हैं । हमारे सामने वे ठहर नहीं पातीं ! " इस रूपक कथा में प्रकट किया गया है कि दोष गुणों से अधिक प्रबल होते हैं । दोष की जरा-सी भी चिनगारी गुणग्राम में आग लगाने की क्षमता रखती है । For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy