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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ आखिर वह अपनी न्यायोचित माँग न माने जाने के विरुद्ध घर छोड़कर चली गई। वह पीहर जाकर अपने माँबाप को यह दुखड़ा सुनाना चाहती थी। गाँव से बाहर पहुँचते ही उसने एक मुर्दे की अर्थी को श्मशान में ले जाते हुए देखकर किसी से पूछा : "कौन थे ये मरने वाले साहब ?" उत्तर मिला : "श्रीमान् सेठ अमरचन्दजी !" औरत आगे चली तो मार्ग में एक भिखारी मिला नाम पूछने पर उसने बताया- “धनपाल।" । उसे अत्यन्त आश्चर्य हो रहा था कि "अमर" भी मरता है और "धनपाल" भी भीख माँगता है ! नाम के अनुसार लोगों में गुण क्यों दिखाई नहीं देते ? । कुछ दूर जाने पर उसने देखा कि एक औरत सूखे गोबर के कंडे बीन - बीन कर ढेर कर रही है। हिम्मत करके उसने उसका भी नाम पूछ ही तो लिया ! उत्तर से ज्ञात हुआ कि उसका नाम लक्ष्मी कुमारी है । यह सब देख सुनकर वह बीच रास्ते से ही पलट कर फिर से अपने ससुराल में लौट आई। पड़ौसियों के पूछने पर उसने घर से जाने और लौटने की घटनाका विवरण सुनाकर कहा : अमर मरन्तो मैं सुण्यो भिखमंगो धनपाल । छाणा वीणे लच्छमी आछो ठनठनपाल ॥" नाथूलाल नामक एक राजस्थानी कवि ने ऐसे नामोंकी एक विस्तृत सूचि.पेश की है : होरालाल नाम सो तो कंकर को करे काज वृद्धिचन्द्र नाम पूंजी गाँठ को गमावे है For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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