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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ जीवन दृष्टि ध्यान के लिए एक समय निश्चित कर लेना चाहिये. यदि दस बजे आपको दूकान खोली हो तो कुछ बिफोर टाइम आप जा पहुंचेंगे; परन्तु साधना के क्षेत्र में सदा आफ्टर टाइम पहुँचेंगे. ऐसा नहीं होना चाहिये. संसार के क्षेत्र में आपका पुरुषार्थ सदा जागृत रहता है किन्तु परमार्थ के क्षेत्र में पुरुषार्थ सो जाता है. पैसों की प्राप्ति के लिए आप सदा आगे रहते हैं, परन्तु परमात्मा की प्राप्ति के प्रयत्न में पिछड़ जाते हैं. इसका कारण यह है कि आप धार्मिक कार्यों को साइड बिजिनेस मानते हैं. हुआ तो ठीक, नहीं भी हुआ तो कोई बात नहीं. ध्यान के लिए एकाग्रता की आवश्यकता : भौतिक संसार की प्राप्ति में सुख का अनुभव करना मानव जीवन का अनादिकालीन लक्षण है, स्वभाव है, संस्कार है. इसके विपरीत परमात्मा की प्राप्ति में आनन्द का अनुभव करना बहुत ऊँचे दर्जे की चीज है, उसके लिए साधना करनी पड़ती है. • हम ध्यान की, आत्मा की, परमात्मा की कितनी भी चर्चा करें, केवल चर्चा से कोई लाभ सम्भव नहीं है, जब तक कि अनुकूल साधन जुटा लिये जायें. ध्यान के लिए आवश्यक बातें : सबसे पहला साधन है - समय निश्चित करना. ब्राह्ममुहूर्त का समय उसके लिए बहुत उपयोगी रहता है. प्रातः पांच बजे आपको उठना है, उठ ही जाना है, जिससे आप समय के अनुकूल अपने को तैयार कर सकें. समय कभी आपके अनुकूल नहीं बनेगा. आपको स्वयंही समय के अनुकूल अपने को ढालना पड़ेगा. दूसरी बात है- स्थान निश्चित करना, जहाँ आप ध्यान करने बैठें, वह भूमि सुन्दर हो, पवित्र हो, स्वच्छ हो, स्थायी हो बार-बार स्थान का परिवर्तन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मानसिक चंचलता का कारण बनता है. चंचलता से व्यग्रता आती है, जो साधना में बाधा डालती है. साधना में समय और स्थान के निश्चय की जो उपेक्षा करते हैं, वे सफलता की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं? जिस स्थान पर ध्यान किया जाता है उसके अणु-परमाणु वातावरण भी साधक को प्रभावित करते है. आदि शंकराचार्य अपने सर्व प्रथम मठ की स्थापना के लिए स्थान की तलाश में निकले. पूरे भारत में भ्रमण करते हुए अन्त में वे कर्नाटक पहुँचे, वहाँ पदयात्रा करते हुए उन्हें एक स्थान पर एक आश्चर्य-जनक दृश्य दिखाई दिया. उन्होंने देखा कि धूप से तपी हुई रेती से झुलसा हुआ एक मेढ़क तड़प रहा है और पास ही एक काला नाग अपने फन से उस पर For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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