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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ध्यान और साधना असम्भव है, परमात्मा के गुणों का स्मरण करने से प्रेम उत्पन्न हो सकता है : चन्दे सु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा । सागरवरगम्भीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसन्तु ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३ जो सिद्ध देव चन्द्रों से अधिक निर्मल है - सूर्यों से अधिक प्रकाशवान है और श्रेष्ठ समुद्र के समान गम्भीर है, वह मुझे सिद्धि प्रदान करे. लोग कहते हैं- “महाराज ! हमारा मन माला गिनने में नहीं लगता, क्या करें?" मैं उनसे पूछता हूँ कि आपको अपनी तिजोरी के नोट गिनने में मन कैसे लग जाता है; उसमें मन कैसे एकाग्र हो जाता है ? सिनेमा देखने जाते हैं, तब ढाई घन्टे तक कैसे पर्दे पर ध्यान जमा रहता है? उपन्यास पढ़ते समय क्यों खाना-पीना तक भूल जाते हैं ? इसका मतलब यह हुआ कि जिन वस्तुओं में आपकी रूचि होती है, प्रेम होता है, उनमें मन लग जाता है, दूसरी वस्तुओं में नहीं लगता. आप में से किसी को बम्बई जाना हो और कोई उदार सज्जन दस हजार रुपयों की एक गड्डी आपको दे दे और कह दे कि यह सारा धन मेरी ओर से वहाँ परोपकार में लगा दीजियेगा. आप गड्डी लेकर नागौर से चल पड़ते हैं. मुसाफिरी करते समय ट्रेन में आपके बहुत साथी होंगे. मित्र होंगे, परिवार के लोग होंगे. सबसे आप बातचीत करेंगे. गप-शप लड़ायेंगे. सब करेंगे, किन्तु किसी को भी यह सन्देह नहीं होने देंगे कि आपके शरीर पर पहने हुए कोट की भीतरी जेब में दस हजार रुपयों की एक गड्डी छिपी पड़ी है. बम्बई सेन्ट्रल पर उतर कर आप बस, ट्राम, टेम्पो, टैक्सी आदि से रास्ता पार करके जिस घर पर आतिथ्य स्वीकार करेंगे, उस घर के निवासियों से भी सब प्रकार की बातचीत करेंगे. शौच-स्नान भोजन आदि सारे कार्य करेंगे, परन्तु मन आपका उस गड्डी में ही केन्द्रित रहेगा. बिना आमन्त्रण के चित्त आपका उसी वर्तुल में चक्कर लगाता रहेगा. क्यों होता है ऐसा? इसलिए कि आप उस गड्डी का मूल्य समझते हैं. ठीक इसी प्रकार जब आप आत्मा का, परमात्मा का मूल्य समझ लेंगे - महत्त्व जान लेंगे, तब माला में मन लगने लगेगा. जिस दिन 'स्व' और 'पर' का भेद आपके ध्यान में आ जायेगा. जड़ और चेतन का भेद समझ में आ जायेगा. शरीर और आत्मा के भिन्न स्वरूप का बोध हो जायगा. उस दिन से मन को एकाग्रता सिखानी नहीं पड़ेगी. वह स्वयं ध्यान में डूब जायेगा. ध्येय में तल्लीन हो जायेगा. अनादिकालीन कर्म बन्धन से आत्मा को मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हो जायेगा. For Private And Personal Use Only कर्म बन्धन से मुक्ति का साधना है- परमात्मा के स्वरूप का स्मरण. उसी को हम ध्यान कहते हैं.
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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