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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्ति की शक्ति परमनाथ अरिहंतः लोकोत्तमो निष्प्रतिमरत्त्वमेव, त्वं शाश्वतं मंगलमप्यधीश! त्वमेकमर्हन् शरणं प्रपद्ये सिद्धर्षि सद्धर्ममयस्त्वमेव ।। अत्यंत वात्सल्य भाव से भरपूर, अनन्त करुणा निधान, तीन जगत के जीवों के एकमात्र आधार हे अरिहंत प्रभो! मैं आपकी शरण में आया हूँ मैं आपका दास हूँ मैं आपका सेवक हूँ मैं आपका किंकर हूँ। आप नाथ सिरताज तीन जगत के परमेश्वर की कृपा दृष्टि से कृतकृत्य हो गया हूँ. आत्मा का सच्चा स्वरूप दर्शानेवाले जगत में केवल आप ही हैं. इसलिए आपकी बराबरी करनेवाला अन्य कोई है ही नहीं. आप का नाम भी मंगल है. सब पापों का नाश करनेवाला है. आप का दर्शन भी मंगल है. सब सुख सम्पत्ति शांति और आनन्द देने वाला है. आप संदेही सिद्धरूप हैं, जीव मात्र के परमोपकारी जगत् गुरू हैं तथा शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वरूप मूर्तिमान धर्म स्वरूप हैं अतः आप साक्षात् पंच परमेष्टि स्वरूप हैं. हे कृपालु नाथ! अव्यवहार राशि से निकल कर आप ही की कृपा प्रताप से मैं इतनी ऊँची स्थिति तक पहुँचा हूँ. अब एक ही नम्र प्रार्थना है कि जब तक मैं उस पदवी को प्राप्त न कर लूं जिसको आप साक्षात् भोग रहें हैं तब तक कभी मेरी उपेक्षा न करने का अनुग्रह करें. मुझे आपकी भवो भव शरण प्राप्त होती रहे. शाश्वत आत्मा : एगो मे सासओ अप्पा नाणं-दंसण-संजुओ सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोग-लक्खणः ।। तीन जगत के तीर्थंकर वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा ने केवल ज्ञान को स्वात्मा में प्रकट कर के सारे जीव अजीव पदार्थों के सब गुण पर्यायों को हाथ की रेखा के समान स्पष्ट देखते हुए For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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