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________________ स्वाध्याय-श्रवण अर्थात् अवन्तिसुकुमाल का वृत्तान्त ४७ का हृदय शान्त नहीं हुआ। वह उठा और किसी को बिना जगाये नीचे आया । इतने में नीचे की मंजिल पर सोई हुई भद्रा माता जग गई और पूछा, 'कौन ?” अवन्तिसुकुमाला ने कहा, 'माता! यह तो मैं हूँ । ' आवाज पहचान ली और भद्रा माता ने खड़ी होकर कहा, 'पुत्र! क्या स्वास्थ्य ठीक नहीं है ?' 'स्वास्थ्य तो ठीक है, परन्तु माता ! हमारे मकान के सामने यह कौन गा रहा है ? ' 'पुत्र ! वहाँ आर्य सुहस्तिसूरि महाराज ठहरे हुए हैं और वे अथवा उनके शिष्य स्वाध्याय करते होंगे । आचार्यश्री महान् विद्वान् एवं पूर्ण तपस्वी हैं। मैंने जान-वुझ कर ही तुझे यह बात नहीं बताई । जा, सोजा अवन्तिसुकुमाल ऊपर गया, शय्या पर करवटें बदलता रहा परन्तु उस ध्वनि की पंक्तियाँ उसके अन्तर में रम रही थीं और पंक्तियों के प्रत्येक पद का स्मरण करते हुए उसके समक्ष नलिनी- गुल्म विमान खड़ा हो गया और देव भव सुना । विचार धारा बदलने का उसने अत्यन्त प्रयत्न किया परन्तु किसी भी तरह विचारधारा में परिवर्तन नहीं हुआ । कहाँ नलिनीगुल्म और कहाँ यह वैभव ! चाहे संसार मुझे महान् ऐश्वर्यशाली एवं भाग्यशाली माने परन्तु देव ऋद्धि के सामने तो यह सव तुच्छ है । इस तुच्छ वैभव, तुच्छ जीवन काल एवं तुच्छ देह में मैं समझ कर भी कव तक पड़ा रहूँगा? अवन्तिसुकुमाल मन्द मन्द कदमों से पुनः नीचे उतरा। सव कुछ सुनसान था । वह सीधा आचार्यश्री ठहरे थे, उस द्वार पर आया । सामने गुरुदेव बैठे हुए थे। वहाँ जाकर ""भगवन्! कह कर उसने वन्दन किया । 'कौन ?' 'मैं अवन्तिसुकुमाल ।' 'भद्र! इतनी देर रात्रि में कैसे आना हुआ ?' 'महाराज ! अभी अभी यहाँ कुछ गाया जा रहा था, वह क्या आपने अच्छी तरह देखा है ?' आचार्य समझ गये कि अभी मैं नलिनीगुल्म विमान का स्वाध्याय कर रहा था उस सम्बन्ध में ही यह प्रश्न पूछना चाहता है। गुरु ने कहा, ''भद्र! हमारे लिए तो शास्त्र ही चक्षु हैं और जहाँ चर्म चक्षु न पहुँचें वैसी अगम-निगम वस्तु हम उनके द्वारा जानते हैं। शास्त्रों में जिस प्रकार नलिनीगुल्म विमान का वर्णन है उस प्रकार का हम स्वाध्याय कर रहे थे । ' 'महाराज ! यह शास्त्र - वचन मैंने उसी रूप में अनुभव किया प्रतीत होता है, और
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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