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________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ 'भगवन! मैं पंगु क्या दीक्षित नहीं हो सकता?' शोक करते हुए राजा ने कहा । 'राजन्! तेरा पंगुपन भी मिटेगा और वह मिटते ही तू इसी भव में मुक्ति-पद प्राप्त करेगा।' यह सुनकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने तथा हाथी ने श्रावक धर्म स्वीकार किया । मुनिवर ने पवन वेग की तरह अप्रतिवद्ध विहार किया और पंगु-राजा पुण्याढ्य नगर में आया। समय व्यतीत होने पर हाथी अस्वस्थ हुआ | उसकी हड्डियाँ टूटने लगी । उसने अन्नजल का परित्याग किया। राजा ने आकुल व्याकुल होकर अनेक उपचार किये परन्तु एक भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ। हस्तिराजा ने राजा को संकेत से वताया, 'मित्र! शोक मत कर । जिसका नाम है, उसका नाश अवश्यं भावी है। अतः अव तु उपवन में चल, क्योंकि हाथी की मृत्यु गाँव के भीतर हो उस गाँव की कुशलता नहीं। हाथी अपने आप उपवन में आया, नीचे बैठा । उसकी आँखें पथराती देख राजा ने कहा, 'हे बन्धु! धैर्य रख, समस्त जीवों के प्रति समता रख, पाप का प्रायश्चित कर । अरिहन्त परमात्मा की शरण हो, सिद्र की शरण हो, साधु भगवंत की शरण हो और भगवान का धर्म तुझे शरण रूप हो ।' राजा के शब्द सुन कर हाथी ने अन्तिम साँस छोड़ा। राजा धैर्य खोकर चीख-चीख कर रो पड़ा । मंत्रीगण ने आश्वासन दिया परन्तु उसकी दृष्टि से किसी प्रकार से हस्तिराज ओझल नहीं हुआ। रात्रि का समय हो गया । राजा इधर-उधर करवटें बदलता और हाथी के गुणों को स्मरण करता लेटा हुआ था कि हाथी उसके सामने दिखाई दिया। राजा तुरन्त बैठ गया और मन में सोचने लगा 'हाथी तो मर गया और मैं उसे देख रहा हूँ, यह क्या?' वह ऐसे भ्रम में पड़ गया। इतने में हाथी ने कहा, 'राजन्! मेरी मृत्यु हो गई यह सत्य है । मृत्यु के समय मेरे अध्यबसायों में परिवर्तन हो गया था। वैद्यों पर मुझे क्रोध आया था, मैं कुछ ठीक हो जाऊँ तो राज्य के हराम के पैसे खाने वाले वैद्यों को कुचल दूँ, उस विचार में मैं आग बबूला हो रहा था। उस समय तूने मुझे आराधना के मार्ग पर सन्मुख करके मेरी चित्त-वृत्ति परिवर्तित कर दी । मैं अरिहन्त परमात्मा की शरण में तन्मय हो गया और देवगति में गया। तेरा उपकार स्मरण करके मैं हाथी का रूपधर कर तेरे पास आया हूँ ।' 'राजन्! तू झरोखे में है। क्या झरोखे में हाथी आ सकता है ? मैं देव हूँ, हाथी नहीं।'
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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