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________________ जहाँ लाभ यहाँ लोभ अर्थात् कपिल केवली की कथा दो माशा स्वर्ण लाकर तुझे दूँगा । ' फिर मनोरमा एवं कपिल दोनों अलग पड़ गये । कपिल अपने स्थान पर चला गया। रात व्यतीत होने लगी। कपिल के मन में विचार आया कि प्रातः जल्दी अन्य कोई व्यक्ति 'धन' सेठ के घर पहुँच गया तो मैं लटकता रह जाऊँगा । अतः वह अर्द्ध रात्रि के समय घर से निकल पड़ा और धन सेठ के घर की ओर चला। अभी रात बहुत शेष थी। कपिल धन सेठ के घर के आसपास चक्कर लगाने लगा । इतने में सन्तरी आवाज लगाते हुए आये। उन्हें देख कर कपिल दूर भाग गया । सन्तरियों ने उसका पीछा किया तो कपिल तीव्र वेग से दौड़ा । सन्तिरयों ने उसे भागता हुआ देख कर चोर समझ कर पकड़ लिया और अधिक पूछताछ किये बिना ही उसे कारागार में डाल दिया । १४१ (६) श्रावस्ती नगरी का राजा प्रसेनजित था । यह परोपकारी, न्यायी और बुद्धिमान था । राजा स्वयं ही न्याय करता था और उचित दण्ड वह स्वयं ही देता था । महाराजा के दरबार में आते ही सन्तरियों ने कपिल को उनके समक्ष उपस्थित किया। राजा ने कपिल की ओर देखकर पूछा, 'सत्य बोलो, तुम कौन हो और चोरी क्यों की?' कपिल ने कहा, 'राजन् ! मैं ब्राह्मण पुत्र हूँ । यहाँ इन्द्रदत्त पुरोहित के पास विद्याध्ययन करने के लिए आया था। उनकी अनुशंसा पर शालिभद्र सेठ के घर भोजन करता कपिल ने मनोरमा से कहा, 'मैं जरुर से शेठ के पास जाऊंगा एवं दो माशा स्वर्ण लाकर तुझे दूंगा.
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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