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________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ उसी कुशस्थल नगर के वाहर आज नगर-निवासियों के दल के दल नगर को लूटने वाले और लोगों की हत्या करने वाले उस दृढ़प्रहारी को वन्दन कर रहे थे, उसके समक्ष नत-मस्तक हो रहे थे और कह रहे थे कि, 'धन्य है इनके त्याग एवं संयम को, जिन्होंने इतने तिरस्कार, इतने प्रहार और इतनी गालियाँ सहीं फिर भी जिन्होंने आँख तक नहीं खोली और न जिनमें तनिक भी क्रोध दृष्टिगोचर हुआ ।' 'धम्मे शूरा ते कम्मे शूरा' की उक्ति ऐसे पुरुषों पर ही चरितार्थ होती है। दृढ़प्रहारी चार हत्याओं को भूल गया। नगर-निवासी उसके पूर्व कृत पापों को भूल गये । वह आत्म-रमण में अग्रसर हुआ | उसके कोई मित्र अथवा शत्रु नहीं रहे | उसने क्लिप्ट कर्मों का क्षय किया और एक वार रौरव नरक का अधिकारी दृढ़प्रहारी पूर्ण योग वल से केवलज्ञानी वना। केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् दृढ़प्रहारी केवली वन कर वहुत समय तक विचरण करके जगत् के जीवों को कर्म-शत्रुओं पर दृढ़ प्रहार करने का उपदेश देकर उन्हें उनसे विमुक्त किया। दृढ़ संकल्प-बल से संयम की आराधना करके वाल, स्त्री, ब्राह्मण और गाय के हत्यारे मुनि भी उसी भव में अपना कल्याण कर सकते हैं। उसके आदर्श स्वरूप उज्ज्वल नाम करने वाले दृढ़प्रहारी महात्मा का स्मरण आज भी जगत का उद्धार करता है । कहा है कि - वालस्त्रीभ्रूणगोघात पातकानरकातिथेः दृढ़प्रहारिप्रभृतेर्योगो, हस्तावलंबनम् ।।१२।। ब्राह्मण, स्त्री, वालक और गाय का वध करने के पाप से नरक के अतिथि दृढ़प्रहारी का उद्धार हुआ, उसमें योग दृढ़ संकल्प-वल ही कारण है। माहणमहिलं सपइ, सगल्भमवि च्छिन्नुपत्तवेरागो। घोरागारं च तवं काउं सिद्दो दृढ़प्रहारी ।।७५ ।। गर्भ एवं पति सहित ब्राह्मणी एवं गाय का वध करके विरक्त बना दृढ़प्रहारी अत्यन्त दुप्कर तप करके सिद्धि पद को प्राप्त हुआ। (योगशास्त्र से) देह किराये के मकान को स्वच्छ रखा जाता है परन्तु उसमें व्यर्थ का धन व्यय नहीं किया जाता, क्योंकि उसे एक दिन छोड़ देना है। इसी प्रकार से देह की देख-भाल की जानी चाहिए परन्तु उसके साज-शृंगार में समय वरवाद नहीं करना चाहिए।
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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