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________________ पिता-पुत्र अर्थात् किर्तिधर एवं सुकोशल मुनि अत्यन्त क्रूरता पूर्वक वाघिन ने मुनि की देह के अवयवों का विच्छेद किया। उस समय उस वाघिनी की दृष्टि दंत-पंक्ति पर पड़ी। दंत-पंक्ति देखते ही वाघिन को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, पुत्र का स्मरण हुआ, उसे पश्चाताप हुआ और वह भी देशविरति धर्म स्वीकार करके हिंसा त्याग कर देवलोक में गई। कीर्तिधर मुनि ने भी शुन्द्र संयम का पालन करके केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्तिपद प्राप्त किया। इस प्रकार पिता-पुत्र का गड़ी जगत् में विख्यात हो गई और सदा के लिए वन्दनीय बनी। (ऋषिमंडलवृत्ति से) POWER < R dian . - 7. ANIRU AA --- हरिमामयपरा दोनो मुनियों को देखते ही वायिन की देह में क्रोध व्याप्त हो गया एवं कीर्तिधर मुनि ने सुकोशल मुनि को परिषह सहन करने के लिए समझाया.
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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