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________________ (१७) नमस्कार मंत्र स्मरण अर्थात् अमरकुमार वृत्तान्त समस्त प्रकार से शान्ति होने के पश्चात् महाराजा श्रेणिक ने राजगृही में एक विशाल चित्रशाला का निर्माण कार्य प्रारंभ किया और, उसमें देवों के, पशुओं के, पक्षियों के और प्राकृतिक दृश्यों के चित्र वनवाये। आगन्तुक उन्हें सच्चे दृश्य मानकर पकड़ने का प्रयत्न करते और पास जाने पर तथा वास्तविकता का बोध होने पर अपने आपको लज्जित महसूस करते । राजा ने वित्रशाला का भव्य प्रवेश-द्वार वनवाया और उस प्रवेशद्वार पर भी अनेक प्रकार के चित्रों के साथ दूर से सबको आकर्षित कर सके ऐसा चित्ताकर्षक कार्य करवाया, परन्तु दूसरे ही दिन प्रातः राजा ने सुना कि चित्रशाला का प्रवेश-द्वार धराशयी हो गया। श्रेणिक राजा को प्रारम्भ में तो दुःख का झटका लगा परन्तु तनिक विचार करने पर उसका मन हलका हो गया और उसने सुदृढ़ नींव भर कर सुदृढ़ रीति से प्रवेश द्वार के पुनर्निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया। पहले की अपेक्षा अधिक शोभा युक्त भव्य द्वार का निर्माण होने पर राजा को शान्ति मिली, सन्तोष हुआ। इतने में दूसरे दिन प्रातः राजा को पुनः द्वार टूट जाने का समाचार मिला | राजा श्रेणिक ने श्रेष्ठतम ज्योतिपियों को बुलवा कर बार-वार द्वार गिर पड़ने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, 'राजन्! यह क्रूर भूमि है जिसका अधिष्ठायक एक क्रूर व्यंतर है। वह माँग रहा है एक वत्तीस लक्षणों से युक्त यालक का बलिदान ।' श्रेणिक राजा को विवेक अथवा विचार नहीं था । उसका मन तो केवल चित्रशाला को भव्यता प्रदान करने की कल्पना में ही प्रसन्न था । उसने राजगृही में ढिंढोरा पिटवाया कि, 'राजा को एक वत्तीस लक्षण युक्त बालक की आवश्यकता है, परन्तु राजा किसी पर अन्याय करके किसी का बालक छीनना नहीं चाहता। जो व्यक्ति स्वेच्छा से अपना वालक देना चाहता हो वह दे; तो राजा उसे बालक के तोल के वरावर सोनये (स्वर्णमुद्रा) तोल कर देगा।' ढिंढोरा सर्वत्र पिटवाया, परन्तु ऐसा हत्यारा मानव कौन मिलता जो अपने हाथों अपना यालक प्रदान करता?
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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