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________________ ११० सचित्र जैन कथासागर भाग - १ परन्तु आँसुओं के कारण यह उसके प्रति अपना प्रेम छिपा नहीं सकी। राजा-रानी वहाँ से अलग हो गये। कुछ समय के पश्चात् राजा उद्यान में गया और आदेश दिया कि इस साधु का वध करके इसकी मृत देह को खड्डा खोद कर उसमें गाड़ दो। सेवक चले और अपने पेट के लिए राजाज्ञानुसार साधु का वध करने लगे । साधु ने तनिक भी विरोध नहीं किया । उसने मन को स्थिर किया, चौरासी लाख जीव योनियों का मन में स्मरण करके उनसे क्षमापना करने लगा और इस प्रकार पाप-कर्म का क्षय करने लगा। ज्यों ज्यों हत्यारे प्रहार करने लगे, त्यों त्यों मुनि पाप का क्षय करने लगे। एक ओर मुनि की देह का घात हुआ और दूसरी ओर कर्मों का घात करके मुनि की आत्मा केवलज्ञान प्राप्त करके मुक्ति-पद प्राप्त कर गई। (४) दूसरे दिन राजा-रानी पुनः प्रातःकाल झरोख्ने में बैठे हुए थे कि आकाश में उड़ती हुई चील की चोंच में से रक्त-सिंचित मुनि का रजोहरण जहाँ राजा-रानी बैठे थे वहाँ गिरा । रानी ने रक्तरंजित रजोहरण देखा । कल देखे थे उस दिशा में मुनि दृष्टिगोचर नहीं हुए और चीलों के दल को उस दिशा में दावत करता देखकर रानी ने निश्चय किया कि अवश्य ही यह रजोहरण (ओघा) मेरे भाई मुनि का है। यह निश्चय होते ही रानी के नेत्रों के आगे अन्धकार छा गया | 'हे भाई!' कहती हुई रानी धड़ाम से नीचे गिर पड़ी और राजा का हृदय मुनि-हत्या के पाप से धड़कने लगा। 'राजन्! इन मेरे भाई मुनि को कल देख कर मेरे नेत्रों में आँसू छलक आये थे । उन्होंने वत्तीस रानियों का परित्याग किया, राज्य-वैभव का त्याग किया और घोर उपसर्ग सहन किये। ऐसे पवित्र मेरे ही नहीं, अखिल संसार के सुजनों के प्रिय मुनि के हत्यारे नरपिशाच की आप खबर लें।' 'आर्ये! मुनि-हत्यारा नर-पिशाच अन्य कोई नहीं बल्कि मैं ही उनका हत्यारा महापापी हूँ। मैं राज्य-धर्म, मानव-धर्म भूल गया और तेरे आँसुओं की पर्याप्त जाँच किये विना उसे तेरा प्रेमी मान कर मैंने उसका वध कराया। रानी! मैं मुनि-घातक महा पापी हत्यारा अपने पापों से कव मुक्त होऊँगा?' राजा-रानी दोनो अश्रु टपकाते हुए नगर के बाहर निकले और मुनि के शव के समक्षगद्गद् स्वरे रोवंतो राजा मुनिवर आगल बैठो, मान मेली ने खपावे रे भूपति समता सायर मां पैठो। तीव्र पश्चाताप करके ऋषि-हत्यारा राजा मुनि के शव के सामने झांझरिया मुनि के
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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