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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरुवाणी - - इतनी प्रचन्ड ताकत परमात्मा के स्मरण में है. आपकी जानकारी में हो तब जाकर उसमे अनगरा आता है, उस क्रिया में प्रेम का जन्म होता है. बडी सुन्दर धर्म क्रिया बनेगी. परिचय भी न हो, अनुराग भी न हो, न कभी ऐसा प्रयास किया है. बेचारे सरलात्मा थे आ गये., महाराज, प्रतिक्रमण मे हमें कुछ आता जाता नहीं. महाराज ने कहा-जैसा मै करूं, वैसा तुम करना. ठीक है. अंधेरा तो था ही. प्रतिक्रमण के समय रात्रि पड़ गई. महाराज वयोवृद्ध थे. अकेले थे, संयोग ऐसा कि मिरगी का दौरा आया करता था, सूत्र पढ़ते महाराज को दौरा आया, महाराज गिरे, ऊपर से लोगों ने सोचा यह भी प्रतिभाव की क्रिया है वे भी गिरे. मिरगी का दौरा ऐसा होता है, व्यक्ति पराधीन होता है, जितने लोग थे वे भी हाथ पांव संकोचने लगे. जब वे एकदम स्वच्छ हो गये, प्रतिबद्धमल पूरा हुआ, महाराज ने दूसरे दिन पूछा प्रतिक्रमण में आनंद आया? हां बाप, आया तो सही, इधर उधर भी लगा, वहां भी लगा, पीछे भी लगा, बड़ी कष्टमय क्रिया है महाराज. आप करते हैं आपको धन्यवाद क्रिया तो परी हई महाराज ने विचार किया कि गलत कर गये. महाराज ने धन्यवाद दिया कि आपने एक दिन तो किया, उसके लिए धन्यवाद. __महाराज, एक बात बतलाऊं? आपने जैसा किया वैसा ही मैंने किया परन्तु एक बात अधूरी रह गई. मेरी क्रिया अधूरी रह गई. जो प्रशिक्षण देना हो दीजिए. इसे जड़ क्रिया कहेंगे, इस जड़ क्रिया से क्या स्वाद मिलेगा? क्या आनंद आयेगा? आराधना तो आनंद देने वाली चाहिए. हम जब खायें, इसमें स्वाद का आनंद आना चाहिए. खाने के बाद इसकी तृप्ति मिलनी ही चाहिए. क्रिया करते हैं तो क्रिया की प्रसन्नता आनंद जो उसका परिणाम है उसे तो आना ही चाहिए. आत्मा को पूर्ण सन्तोष और तृप्ति मिलनी ही चाहिए, वह आज तक मिला ही नही, क्योंकि हमने आज तक उसे समझने का प्रयास किया ही नहीं. एक बार शुद्ध भाव से यदि परमात्मा का दर्शन करे. एक मास स्वपर्ण का लाभ मिलता है. उत्तरोत्तर भाव की वृद्धि कर्म की निर्जरा में सहयोग देती है, यहां भावों का मूल्य है. “यस्मात् क्रिया प्रतिफलन्ति न भाव शून्या" भाव से शून्य क्रिया कभी फलीभूत नहीं बनती. यहां जो लिखा है. "प्रतिपूर्ण क्रिया चेति" क्रिया में प्रतिपल सावधान रहे, पूर्ण जागरूक रहे, धर्म क्रिया का पूर्ण आनंद लेने वाला व्यक्ति बनें. वह धर्म किया गया सफल कैसे बनेगा? हमारी धर्म क्रिया प्रारम्भ होती है परमात्मा के दर्शन से, परमात्मा के मंगल स्मरण से, उसमें किस प्रकार का आनंद मिलना चाहिए, उसकी अनुभूति कैसी होनी चाहिए? आपका इकलौता लड़का हो, अमेरिका गया हो, वर्षो बाद यदि यहां आने वाला हो, आपको समाचार मिल जाये कि इस फ्लाइट से मैं आ रहा हूं. आपको बतलायें, यह सुनकर 383 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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