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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी: मैं तो ये देखता हूं, आप भी परमात्मा के अतिथि हैं. मैं तो परमात्मा के रूप में ही जगत को देखता हूं. आप निश्चित रहें, आपकी और क्या सेवा करूं? आप बतलाएं. और तो कुछ नहीं भूखा और प्यासा हूं अगर थोड़ा सा भोजन मिल जाए तो आनंद आ जाए. जेल के अन्दर सो कर के मेरे सारे बदन में दर्द हो गया. कहीं सोने को सुन्दर तकिया या गद्दा मिल जाए तो मैं आराम से रात निकाल लूं. बड़ी सुन्दर मुझे निद्रा आएगी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मैं व्यवस्था करता हूं. सन्त के हृदय में ऐसी अपूर्व करुणा थी, अपने साथियों से कहाबहुत बड़े मेहमान हैं, इनके साथ ऐसा व्यवहार करो. पापियों के साथ और सुन्दर व्यवहार करो. धार्मिक व्यक्ति इतने खतरनाक दर्दी नहीं हैं. डाक्टर, जो अधिक सीरियस मरीज होता है, उसपर अधिक ध्यान केन्द्रित करता हैं. उसको बचाने की पूरी कोशिश करता है. साधु सन्तों का स्वभाव भी ऐसा ही है. पापी पुरुषों के प्रति और अधिक करुणा होगी. जो सीरियस मरीज हैं, कर्म के रोग से बहुत पीड़ित हैं. उसके अन्दर मैं उस पापी को कैसे बचाऊं, कैसे उसे पाप से रक्षण दूं. उसकी आत्मा को आरोग्य कैसे मिले? साधु अधिक ध्यान उस तरफ देगा. धार्मिक व्यक्ति इतने खतरनाक होते ही नहीं. उनके पास कोई ऐसा दर्द भी नहीं, सामान्य उपचार किया, कोई खतरा नहीं. परन्तु पापी के प्रति साधु की करुणा बहुत जबरदस्त होगी. अपने साथियों से कहा- सुन्दर से सुन्दर आहार इनके लिए बनाओ. जो सामग्री थी उसमें से स्पेशल रसोई तैयार की. बहुत बड़े मेहमान हैं इसीलिए इनका स्वागत भी उसी ढंग से करना है. चांदी की प्लेट निकाली गई बैठाया, भोजन करवाया. सोने के लिए बहुत सुन्दर स्थान उनको दिया गया. मन के अनुकूल भोजन मिला था, पेट भर कर के खाया. विस्तर में गया, सोया. सन्त भी निश्चिंत होकर सो गए. उसके मन में फिर से पाप का प्रवेश हुआ. युवावस्था थी, पाप के संस्कार थे, पूर्वकृत कर्म ही ऐसा करके आया था, संस्कार नए नहीं थे. ऐसा निमित्त मिला कि और ज्यादा संस्कार जागृत हो गए कि कैसा सुनहरा मौका है, आज कितने शुभ दिन में जेल से छूटा है, खुला द्वार मिल गया, सुन्दर स्थान मिल गया. खाने को अच्छा भोजन, सोने के लिए पलंग मिल गया, परन्तु वहां सुनहरा चान्स चांदी की तस्तरी है. एक नहीं दर्जनों तस्तरियां यहां पड़ी हैं. कोई पूछने वाला नहीं, कोई देखने वाला नहीं. यदि मैं लेकर चला गया तो यहां कौन इन्क्वायरी करेगा. काफी दूर निकल जाऊंगा, अब तो मेरे पास पैसे की कमी नहीं रहेगी. मन की ऐसी कल्पना में नींद नहीं आ रही थी. E रात्रि में यही सोच रहा है, और ऐसे अशुभ परमाणु उसमें आ गए, विचारों में आया कि उसके सारे विचार दूषित कर गए, उठा कि मैं जाऊं जाकर अलमारी खोलकर सारी तस्तरी अपने बैग में डाल ली. झोला भरकर के चले, हजारों डालर का माल मिल 361 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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