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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -गुरुवाणी = उस मन्त्र जाप के अन्दर बोल रहा था. लोक भाषा में ही मन्त्र जाप था. लोग भी अच्छी तरह समझ सकें, माला गिनते-गिनते वो जोरों से कहता. “अगली भी अच्छी पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते की मार" मन्त्र में और कुछ नहीं था. "अगली भी अच्छी पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते की मार" संयोग देखिए. गांव की औरतें जब पानी भरने जा रही थीं, आगे राजपूत घर की औरत थी. और उसके आगे ब्राहम्ण परिवार की औरत थी, पीछे एक वाणिक परिवार की औरत थी, तीन औरतें थीं. तीनों मटका लेकर पानी भरने जा रही थीं. जब यह मन्त्र सुना, विचार में पड़ गईं. पागल होगा, दिमाग खराब होगा. पानी भर के जब वे लौटीं तब भी वहीं जाप चल रहा था__ “अगली भी अच्छी, पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते की मार" राजपूतनी का खून गर्म हो गया, मैंने क्या ऐसा पाप किया है, गुनाह किया है, मैने क्या ऐसी बदतमीजी की है, मेरे? क्यों जूते की मारको. दो के बीच में चल रही थी. घर आकर अपने पति से बात की. परिवार को मालूम पड़ा, परिवार उत्तेजित हो गया. उसे और कोई नाम नहीं मिला, कृष्ण का नहीं, राम का नहीं. यह कौन सा मन्त्र है. यह कौन सा जाप है. बड़ा आवेश आ गया. पति ने तलवार ली, राजपूतों की तो असल भाषा तलवार ही है. तलवार ली और आया कि अभी सर कलम कर देता हूं. मात्र मुंह होता है. आवेश में गया. उत्तेजित व्यक्ति के पास आंख नहीं होती. मुंह का द्वार खुला रहता है. खुले हुए द्वार से दुश्मन तो सहज में आ जाते हैं. कर्म शत्रुओं का प्रवेश बड़ा आसान होता है, क्रोधित अवस्था में. क्रोधी व्यक्ति का द्वार खुला रहता है, प्रकाश बंद रहता है. वह देखता नहीं, वह आंख बंद है, अज्ञान का अंधकार है और इण्डिया गेट खुला रहता है, मुंह खुला रहता है, सारे शत्रु अंदर प्रवेश कर पाते है. बड़े आसानी से अपना अधिकार जमा लेते हैं. वह आदेश में आ गया, परंतु वहां साधुओं के पास कोई डबल रोल तो था नहीं. वही जाप चल रहा था. "अगली भी अच्छी, पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते की मार" वह चमक गया कि यहां कोई अगला नहीं, पिछला नहीं, कोई नहीं, इस मन्त्र का रहस्य क्या है? कोई औरत यहां पर नहीं है. यह जाप यही कर रहा है. बड़े जोरों से बोल रहा है, इसके पीछे कारण क्या है? चुप रहा, जरा शान्त हुआ. मन में एक जिज्ञासा पैदा हुई कि साधु से जाकर इसका रहस्य पूछा जाए. जैसे ही वहां गया, साधु के चरणों में एक बार तो गिरा, शांत स्वभाव उसका. व्यक्ति जब शांत होता है, उसके विचार में जब पवित्रता आती है. ज्ञानियों ने कहा-उसमें एक अपूर्व शक्ति होती है, जिसे हम लब आफ अट्रैक्शन कहते है. मैग्नेट की तरह उसके 359 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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