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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी से करता है. पाप में बड़ी प्रसन्नता है, जगत उपार्जन के लिए हम पाप बड़ी प्रसन्नता से करते हैं. दोषी बनते हैं परन्तु कोई व्यक्ति नहीं चाहता कि पाप की सजा मुझे मिले. धर्म करना नहीं और धर्म का फल मुझे चाहिए, कदाचित धर्म करना पड़े तो रो करके करें, उदासीनता से करें, लाचारी से करें कि करना पड़ रहा है, मजबूरी है परन्तु उसमें प्रसन्नता नहीं आएगी. यदि पाप करना पड़े, पाप से उपार्जन करना पड़े तो बडी प्रसन्नता होगी. अनादि काल का संस्कार है, जो प्रसन्नता हमारे लिए है कितनी बार में तरना है किसी को मालूम नही. प्रसन्नतापूर्वक किया हुआ भव रो करके भी नहीं छूट सकता. इतनी भयंकर पाप प्रवृति होती है, परन्तु जगत का एक संस्कार पाप बड़े मजे से करना है. और पुण्य रो करके करना है. इसीलिए ज्ञानियों ने कहा-जो भी साधना करें, कोई कामना है ही नहीं, कोई इच्छा तृष्णा नहीं. आज तक सारी धर्म साधना को इच्छा और तृष्णा लेकर के कुण्ठित बना दिया, मलिन बना दिया. उसी का परिणाम कई बार अज्ञानता में की हुई साधना जो भी संसार के लिए बनी. फिर से नया संसार हमने कर दिया. जहां संसार का विसर्जन करना था, साधना के द्वारा, पर अज्ञान दशा में साधना का उपयोग गलत दिशा में करके नया संसार हमने पैदा किया. संसार स्वयं एक सजा है, यह मानकर के आप चलना, यह संसार नहीं हमारे लिए सेन्ट्रल जेल हैं हम गुनहगार बन करके आये. कोई न कोई ऐसी भूल है पूर्व के अन्दर कि परमात्मा के गुनहगार हम बनकर के आए. कर्म के कैदी बनकर के आए. जीवन में पराधीनता के सिवाय स्वाधीनता है ही नहीं. आप जन्मे अपनी इच्छा से नहीं, कर्म की गुलामी. कहा से कहां आपको आना पड़ा पूरी स्वाधीनता में जीवन व्यतीत होता है. और व्यक्ति अपनी आजादी में आना पड़ा. पूरी स्वाधीनता में जीवन व्यतीत होता है. और व्यक्ति अपनी आजादी की बात करता जिस का पागलपन कैसा है? कोई भी कार्य इच्छा के अनुसार होता नहीं. सबसे बड़ी कर्म की गुलामी, यही पराधीनता है. "कर्म प्रधान विश्व करि राखा", तुलसी जी का कहना है कि सारे जगत में कर्म की पराधीनता है. जैसा कर्म चाहेगा वैसा ही आपके साथ व्यवहार करेगा. "कर्म नचावत तिमही नाचत", मदारी बन्दर को नचाता है, कर्म हमें नचाता है. वह जैसे नचाए वैसे ही नाचना पड़ता है. जो बुलाए ऐसे ही बोलना पडता हैं, कहां तक ऐसी गुलामी में हम अपना जीवन व्यतीत करें. कहां तक ऐसी परिस्थिति में रहकर हम अपने जीवन को बर्बाद करेंगे. प्रवचन इसलिए दिया जाता है व्यक्ति सावधान हो, प्रेरणा मिले, प्रकाश मिले, प्रवचन के द्वारा, आत्मा की जागृति के अन्दर कुछ नया रास्ता मिले. दुख और दर्द से मुक्त होने का आठ उपाय उसको प्रवचन के द्वारा मिले. जगत के दर्द से मै अपनी आत्म 355 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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