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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी के विकार से परिपूर्ण होता है. जो हर्ष को प्राप्त करने, गलत वस्तुओं को प्राप्त करने के परिणाम विषय को लेकर पैदा होता है, वह आत्मा के लिए बड़ा अनर्थकारी है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर्ष पाप को गुणाकार करता है उसका काम है पाप की वकालत करना, वह पाप को बचाने का प्रयास करेगा. " "अरिषड् वर्ग त्यागेन' आत्मा के इन शत्रुओं का मुझे त्याग करना है, पहले तो हमें इन शत्रुओं का परिचय भी नहीं कि कितने आराम से अन्दर बैठे हैं ? आप क्या बिगाड़ सकते हैं, इनका ? है ताकत क्रोध को नष्ट करने की, आप के पास कोई भी ताकत नहीं. एक दम कायर हो करके हम बड़ी लाचारी से बैठे हैं. कुछ कर नही पाते. क्या करें ? यह तो इन शत्रुओं का परिचय हुआ. क्या कभी इसके लिए आप ने कोई उपाय सोचा है ? कोई ऐसा रास्ता निकाला है, जिससे आत्मा के शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो ? मैं एक प्रश्न उपस्थित करूँ आप यहां चांदनी चौक में दूकान करके बैठे हैं, कोई बदमाश व्यक्ति आता है. यदि आप से कहे कि सेठ साहब हजार रुपया चाहिए, लाओ. आप उसके चेहरे से भाँप जाते हैं कि खतरनाक आदमी है. देने में ही कल्याण है. नहीं तो कल खतरा पैदा होगा, आपने एक हजार दे दिया. एक बार तो आप बच गए वह आप की कमजोरी देख गया दूसरी बार फिर आयेगा क्योंकि दुकान देख गया है. आप सोचिए. ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे. आप लड़ते हैं, मुकाबला करते हैं, तो मार खाते हैं. आप दुकान छोड़ करके भाग नही सकते, और कमा कर उसे देते हैं, तो मूर्ख बनते. ऐसी परिस्थिति में आप कौन सा रास्ता निकालेंगे ? मुझे बतलाइए ? परमात्मा ने कहा युक्ति से मुक्ति मिलती है. बुद्धि लगाइये, युक्ति से काम करिए. बिना युक्ति से कुछ नही होगा. · अहमदाबाद में सेठ मफतलाल थे पास वाले मकान के सामने ही एक पठान रहता था. उस जमाने में, उस मुगल साम्राज्य के समय, अहमदाबाद के सूबेदार को भी बहुत बड़ा अधिकार था, प्रदेश पर सूबेदार उस प्रदेश का मालिक होता था. गवर्नर होता था. वह पठान उनका रिश्तेदार था. मफतलाल सेठ की आदत थी हमेशा मूँछ रखना. पहले तो मूँछ अपने देश में एक प्रतीक था, व्यक्ति अपनी मूँछ पर ताब देकर निकलता था, उससे उसकी मर्दानगी दीखती थी. पुरुष का जो चिन्ह था, जिस पर हमें गर्व था, वह हमने खत्म कर दिया. क्योंकि जब मर्दानगी ही रही नहीं तो फिर मूँछ रखकर ही क्या करना ? पुरुषत्व ही नहीं रहा तब साइन बोर्ड काहे का रखना. साफ कर दी. किसी कवि ने कहा है: मूँछ मुड़ा फैशन चला, देखो यारों इस देश में। मर्द भी हो चले अब, हीजड़ों के वेश में ॥ हमारी यह दशा हो गई. मफतलाल तो बहुत बड़ी मूंछ रखता था और सुबह ताव 349 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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