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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -कवी पाणा चेहरे को नहीं, मेरे कपड़ों को नहीं, वे चाहे लाल या पीला या सफेद हैं, अन्दर का खजाना देखो, अन्दर यदि साधुता है तो सौ बार नमस्कार. बाहर की पैकिंग का, पहनकर के आए कितने ही सुन्दर कपड़ों का, ज्ञानियों की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं होता. ऐसे साधु तो जगत में बहुत सारे भटकते फिरते हैं. मफतलाल का खेत था और साधु पहुंच गये, चार पांच संन्यासी होंगे बेचारे, वहां गये, गांव में खाना मिला नहीं. संयोग से ऐसा ही समय था, निकलकर रास्ते में गये चार पांच चेले थे, मजा मिल गया, खेत आ गया, गन्ने का खेत था. उन्होंने देखा कि अपनी भूख और प्यास दोनों इससे मिटा लेंगे. अन्दर देखा कि खेत में कोई है या नहीं. ध्यान से देखा तो जाना खेत का कोई रखवाला वहां नहीं था. सोचा मौका अच्छा है. चेलों से कहा जाओ जल्दी से कुछ गन्ने तोड़ लाओ. आराम से खायेंगे. भरपूर रस मिल जायेगा. बेचारे गये अन्दर. गुरु बाहर खड़े रहे, चेले अन्दर गये. गुरु बड़े होशियार थे, नहीं तो मार्केट कैसे चले, आप जैसे ग्राहक कैसे मिलें? कंठी बांधना है, अपना रागी बनाना है. अपने को मानने वाला छोटा सा संप्रदाय बनाकर फिर कहेंगे कि मैं उनकी मान्यता में हूं. क्या परमात्मा के शासन में या किसी आगम में ऐसी व्यवस्था है. यदि है तो मुझे बतलाइये. अगर मैं भूल करता हूं तो. शब्द का जाल ऐसा कि बेचारे भद्र लोग उस जाल में फंस जाते हैं, उन शब्दों में आ जाते हैं, फिर उसकी बातों में ऐसे रंग आते हैं कि बाकी सब छूट जाता है और वह व्यक्ति वहां मुख्य बन जाता है. संप्रदाय कभी मोक्ष देता है? कोई साधु कभी मोक्ष देता है? क्या किसी साधु की मान्यता से मोक्ष मिलता है? क्या भगवान की वाणी झूठी है? “कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव" भगवान ने कहा कि क्रोधादि कषायों से मुक्त बनो जिससे आत्मा पूर्ण समत्व में आ जाये. वहीं मोक्ष का कारण है. यहां तो ये साधु रास्ता बतलाने वाले हैं, वे कोई मोक्ष देने का अधिकार नहीं रखते. मेरे पास कोई लाइसेन्स नहीं है जिसे मैं दे दूँ कोई जमाना था. ऐसी मान्यता लोगों में चलती थी. क्रिश्चियनों के धर्मगुरू पोप वेटिकन नामक सिटी में रहते थे. उस समय दो तीन सौ वर्ष पहले, ऐसी मान्यता चल गई कि पोप में उनके ईश्वर का प्रतिनिधि हैं संसार कि वह चिट्ठी लिखकर दे दे तो तुमको स्वर्ग मिलेगा, यह मान्यता चली. यह ऐतिहासिक सत्य है. इग्लैंड की पार्लियामेन्ट में प्रस्ताव है पर पोप पास करे तभी वह प्रस्ताव पास होता था. एक वक्त था, जब पोप का बोल बाला था. आज भी दुनिया में सबसे धनाढ्य वही है. तीस लाख की कुर्सी है उनके बैठने की. कहने को वह महात्मा कहलाता है. पर इससे ज्यादा वैभव उनके पास. वह चिट्ठी लिखकर दिया करता था. एक बड़ा होशियार आदमी समिसन 341 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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