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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी ABVE - का नहीं, साधुता का राग रखना, तुम्हारा कल्याण होगा. कभी व्यक्तिगत राग के अन्दर, कभी व्यक्तिगत मोह के अन्दर आप मत आना. आप मेरे से धर्म प्राप्त करें धन्यवाद. आप मुझे सौ बार याद करें, मैं मना नहीं करता, परन्तु उसे ऐसा रूप दिया जाये जो सार्वजनिक हो, या जो सामाजिक रूप ले ले. व्यक्ति को आप इतना महत्व मत दें. अपने निजी रूप में आप जरूर माने कि धर्म गुरु हैं, उनसे मैंने धर्म प्राप्त किया हैं, जरूर उनका अनुराग रखें, वह आपके लिए आशीर्वाद हैं परन्तु जब उसे आप व्यापक रूप दे देंगे, उसे आप फैलायेंगे तो तीर्थंकर महावीर की वाणी की अवमानना होगी. अनेक साधु पुरुषों की उपेक्षा हो जायेगी. मुझे ऐसे भी कई मिले, कहा कि महाराज तो बस उन्हीं को मानते हैं, नमस्कार अगर दूसरे को करें तो वह धर्म कैसा? वह शिष्टाचार भी उनके पास नहीं. मैंने उनसे कहा - बड़ी अच्छी बात है, आपका धर्म इतना कमजोर है कि अगर आप मुझे नमस्कार करें और वह धर्म चला जाए? अगर इतना डरपोक आपका धर्म है, इतना कमजोर धर्म है तो याद रखना, यह धर्म आपको कभी मोक्ष नहीं दे सकेगा. इतना कमजोर कि मुझे नमस्कार करें और वह चला जाये, ऐसे कमजोर धर्म से मुझे कोई मतलब नहीं. मैंने कहा - यदि आपके यहां कोई इन्कम-टैक्स कमिश्नर आ जाए कोई सरकारी अफसर आ जाये और किसी ऐसी परिस्थिति में आपको आना पड़े तो क्या आप उनको नमस्कार न करेंगे? हां महाराज करेंगे. सड़े हुए आदमी को नमस्कार कर सकता है, संसारी आत्माओं को नमस्कार कर सकता है, जो एकदम भ्रष्टाचार का सागर हो, भ्रष्टाचार से भरा हुआ हो, वहां तो हम जाकर नमस्कार कर आयें, वहां गुप्तदान देकर उनकी भक्ति भी कर आयें, उनको लाने ले जाने के लिए दस बार गाड़ी भेजें पर दूसरे साधुओं को नमस्कार भी न करें. वे आते हों तो उनके स्वागत के लिए तैयार, उनके सम्मान के लिए तैयार, वहां उनका धर्म नहीं जाता? परन्त हमारे जैसे कोई साध रास्ते में मिल जायें और उन्हें हाथ जोड़ें या नमस्कार करें तो उनका धर्म चला जाये. धिक्कार है उनकी ऐसी बुद्धि को, आज यह हमारी आदत हो गई है. यह रोग वायरस की तरह फैलता जा रहा है. बस मुझे ही मानों मैं ही तुम्हारा कल्याण करूंगा. इस भावना से, इस रोग से स्वयं को बचाने का प्रयास करें. मेरा यही कहना है. मेरी यह चीज दुकानदारी न बन जाये. मैं यहां परमात्मा का प्रामाणिक रूप से व्यापार करने वाला न बनं. प्रमाणित रूप से उस का परिचय देने वाला बनूं. अगर मुझ में विकार आ जाये, परमात्मा का नाम गौण करके मैं अपना माल सप्लाई करूं, अपने ही विचार यदि यहां प्रकट करूं और अपने ही अनुयायी बनाऊं, तो प्रथम नम्बर का मैं अपराधी बनता हूं. गुनहगार बनता हूं. परमात्मा महावीर के शासन की उदारता देखिये, उन्होंने यहां गुणों का अनुराग रखा, व्यक्ति का नहीं. किसी संप्रदाय का नहीं, किसी आचार्य का नहीं.. ऐसे गुण जिस किसी में हों, ऐसी साधुता को मैं वन्दन करता हूं. ऐसे साधु पुरुषों को नमस्कार करता हूं, मेरे - 340 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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