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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी Heal ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक जाने की है. पचीस हजार मील की हमारी दुनिया है, आठ हजार मील का वृत्त है, पचीस हजार मील उसकी परिधि है. इस दुनिया में साढ़े तीन अरब की संख्या है. इसी में हम रहते हैं. हमारे पास वह साधन आज तक निर्माण नहीं हो पाया, आविष्कार कर नहीं पाए कि गुरुत्वाकर्षण को चीर करके उस क्षेत्र से आगे बढ़ें, परन्तु इतना तो वे मानते हैं कि उत्तरी ध्रुव के पास कम से कम हजारों किलो मीटर तक उन्होंने खोज किया. वर्फ की दीवार है, सिवाय वर्फ के वहां कछ नहीं है. बहत प्रयास किया, वे खोज नहीं कर पाए, इस ध्रुव का आकर्षण ऐसा है, यदि आप उत्तर से निकलें तो दक्षिण में ही आएंगे. इस जगत का, इस वतन का आकर्षण ऐसा है. आप कोई भी चीज यदि सीधे फैंके तो भी तिरछी जाएगी, यह ध्रुव के आकर्षण का कारण है. जिन लोगों ने प्रयास किया कि उत्तरी ध्रुव को पार करके आगे चला जाऊं, वे जा नहीं पाए. विमान स्वयं मुड़ जाता है. तुरन्त टर्न लेता है. किन्तु लोग, पृथ्वी जरूर है. ये वैज्ञानिक मानते हैं. बर्फ से ढकी हुई पृथ्वी है. लाखों की संख्या में द्वीप और समुद्र हैं. ऐसा आपके भौगोलिक भी मानने लगे हैं जो जैन-दर्शन मानता है. उसे ये आज अपने प्रयोग के द्वारा आपके सामने सिद्ध करके बतला रहे है कि बहुत सारे क्षेत्र हैं. ___ महाविदेह क्षेत्र भी, पूर्व दिशा में हैं, पूर्व दिशा की तरफ इंसान के अन्दर लाखों मील दूर एक विशाल क्षेत्र आया हुआ है. भारत की तरह से वहां भी लोग हैं, हमेशा की तरह से चौथा आरा जैसा, जो महावीर का समय था, जिसे हम चौथा आरा कहते थे. वही पीरियड़ वहां कायम होता है. वहां समय में काफी परिवर्तन नहीं आता, वहां काल का छ: भाग नहीं रखा. गया, ये अरब क्षेत्र की उपेक्षा से रखा गया. उस क्षेत्र में तो कायम चौथा आरा होता है. वहा प्रतिदिन मोक्षगामी आत्मा भी होती है. सातवें नरक में जाने वाली आत्माएं भी होती हैं. पापी और पुण्यात्मा तो आपको हर जगह समान रूप से मिलेंगे. जैन भूगोल का यदि अभ्यास करें तो मालूम पड़ जाएगा. इस क्षेत्र का परिचय मिल जाएगा. उंचाई के विषय में मैंने आपके सामने बहुत स्पष्टीकरण कर दिया. एक प्रश्न और:-महाराज कई जगह लिखा है. "जीवो जीवनम्" एक जीव दूसरे जीवन का आहार होता है. उसका भोजन होता है. ऐसे समय में यदि कोई जीव अपना भक्ष्य ग्रहण करता हो, उस समय उसको बचाना या नहीं बचाना!" अगर हम बचाते हैं तो उसको भोजन से वंचित रखते हैं. ___ बड़ी सुन्दर बात है आपको बड़ा सुन्दर नज़र आएगा, परन्तु मेरा आपसे कहना है भगवन्त की आज्ञा है, अपने हृदय की कोमलता को, अपने हृदय के लक्षण के लिए उसको बचाना अपना धर्म है. वह जीव किसी भी प्रकार से भक्षण करें, उस जीव के कर्म संयोग ही ऐसे हैं, पर अपनी नज़रों से यदि हम देखते हैं कि किसी पर आक्रमण किया, यदि 317 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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