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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी - पाला - अब आप विचार कर लीजिए. इतनी बड़ी खोपड़ी होगी तो इन्सान कितनी उंचाई वाला होगा. वैज्ञानिक बहुत खोज करके इस निष्कर्ष पर आए कि किसी जमाने के अन्दर गुरुत्वाकर्षण के कारण यह पृथ्वी बहुत फैली थी, आज जैसी नहीं थी. आज तो पृथ्वी का हिस्सा कम है. पानी ज्यादा. पृथ्वी छोटी हो गई, जो हमारे यहां माप बतलाया गया, जैन भूगोल के अन्दर, जैन गणित के अन्दर, उस प्रकार से आज की पृथ्वी नहीं रही, इसमें परिवर्तन आया. उनका कहना है कि किसी जमाने के अन्दर इसी धरती पर बहुत उंचाई के लोग होते थे, बहुत विशाल इनका शरीर होता था. ऐसे जीवाणु मिले, ऐसे मरे हुए प्राणियों का अस्थि पिंजर मिला है जिससे आज तो यह सिद्ध होता है कि लाखों वर्ष पहले मानव बहुत विशाल काया में था. मानव जीवन की शारीरिक रचना बहुत विशाल रूप में होती थी. प्राणी भी बहुत विशाल होते थे, परन्तु संकुचित होने का कारण पृथ्वी की संकुचित होने की क्रिया. इनका कहना है-इस गुरुत्वाकर्षण के कारण धीमे-धीमे पृथ्वी के अन्दर संकुचन की क्रिया चालू है. लाखों वर्षों से गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के अन्दर संकुचन की क्रिया हो रही है. इसके कारण गुरुत्वाकर्षण का जो दबाव पड़ता है उससे व्यक्ति की उंचाई कम होती चली जाती है, यह आज के वैज्ञानिक का कथन है और किसी प्रकार से सत्य भी हो सकता है. बिना प्राकृतिक वातावरण के शरीर की उंचाई-निचाई, घटना बढ़ना तो सम्भव नहीं, प्रकृति भी इस कार्य में साथ देती है. गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त के अनुसार उसका जो दबाव है, संकुचन की जो क्रिया है, इस कारण से पृथ्वी भी संकुचित बनी, ऊपर से यह दबाव ऐसा आया, यहां जन्म लेने वाले प्राणी भी धीरे-धीरे छोटे होते चले गए. यह तो बहुत स्पष्ट है, आपके सामने जब वैज्ञानिक कहते हैं तो कुछ खोजकर ही उस निष्कर्ष पर आए. परमात्मा का तो कथन है, वे जीव कर्मानुसार अपने शरीर को प्राप्त करता है. पहले किसी जमाने के अन्दर सुना करते थे, बहुत लम्बे चौड़े शरीर वाले हुआ करते थे, बड़ी हृष्ट पुष्ट काया होती थी, बड़े बलवान होते थे. कहा जाता है, हमारे यहां सिद्धराज 13 वर्ष की उमर में तो युद्ध करने गया था. यह तो हजार वर्ष पहले की घटना है. अब तेरह वर्ष के बालक को आप यहां बुलाएं तो मुंह धोना भी नहीं आए. वह तेरह वर्ष की उम्र में युद्ध में गया. ऐसी ताकत थी. कहां से आया? पूर्वकृत कर्म के कारण, और कुछ नहीं. अपने इस प्रश्न के साथ एक ही प्रश्न है. महाविदेह क्षेत्र कहां पर है? हमारे यहां असंख्य द्वीप असंख्य क्षेत्र हैं. मात्र महाविदेह क्षेत्र नहीं, आज के वैज्ञानिक भी इस सत्य को मानकर चलते स्वीकारते हैं. वे तो मानते हैं कि हमारी ताकत सिर्फ उत्तरी Ooll 316 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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