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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra STan RE www.kobatirth.org गुरुवाणी "सर्वत्र निन्दा संत्यागोऽवर्णवादश्च साधुषुः " यदि हम इसी प्रकार धार्मिक विषयों को लेकर क्लेश पैदा करें. अशान्ति पैदा करें. सामान्य वस्तुओं को लेकर यदि राग का पोषण करें. हमारी क्या दशा होगी ? जरा आत्म निरीक्षण करना. जितने भी पर्व के प्रसंग आते हैं, प्रेरणा देने के लिए आते हैं. इन सब प्रेरणाओं के कारण हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवान महावीर का निर्वाण जगत के कल्याण के लिए हुआ. किस तरह से आत्मा को निर्वाण पद मिले? उसकी प्रेरणा लेनी है. परमात्मा पार्श्वनाथ प्रभु का कल्याण परसों आ रहा है. इस जगत पर महान उपकार करने वाले तीर्थकर परमात्मा. ऐसे महानतम उपकार करने वाले सिद्ध भगवन्तों का तो उपकार है. इसीलिए अरिहन्त का स्मरण पहले करते हैं. और सिद्ध का स्मरण बाद में करते हैं आपके जीवन में सबसे नजदीक का उपकार आपके पिता का होता है. इसीलिए नाम के आगे पिता का नाम रखते हैं. दादा तो उपकारी है ही. परन्तु नहीं निकटतम उपकार करने वाला कौन ? माता और पिता. इसीलिए माता और पिता का संयोजन हमारे जीवन में सबसे नजदीक का उपकार करने वाले तीर्थंकर परमात्मा हैं. उनके शासन में रहकर के मैंने धर्म प्राप्त किया. सिद्ध भगवन्तों का उपकार तो होता ही है, पार्श्वनाथ भगवान की आराधना भी अपने को निर्वाणक कल्याण में करनी है. परमात्मा ने उस दिन जगत के समस्त दुखों से अपनी आत्मा को मुक्त किया. आराधना मात्र स्वहित स्वकल्याण के लिए रखी गयी. जगत की चर्चा के लिए नहीं. समस्याओं को पैदा करने के लिए नहीं. हमारी आत्मा का कल्याण करने वाली, भविष्य में मोक्ष देने वाली बने, इस मंगल भावना से ही आराधना करनी चाहिए. पर्व को कभी कोई विकृत न करें. संवत्सरी पर्व महा मंगलकारी है, वह कोई क्लेश का पर्व नहीं, भगवान के सभी कल्याण चाहे जन्म का हो, दीक्षा का हो, श्रवन का हो, केवल ज्ञान का हो या निर्वाण कल्याण हो. पर्व की पवित्रता में भी आज हम आक्रमण करने लग गए. पर्व की पवित्रता भी नष्ट करने लग गए. जो पर्व एकान्त आत्म कल्याण का साधन है. उसको समस्या का पर्व बना दें छोटी मोटी बातों को लेकर हम यदि घर्षण करें) परमात्मा महावीर का वह शासन किस तरह से हमारा कल्याण करेगा. जरा भी किसी कार्य में उतेजना नहीं आनी चाहिये वही अपना समभाव वही सुन्दर सात्विक अराधना. एकान्त आत्मा की दृष्टि से ही अपने को करना है. पर्व को विकृत नहीं करना है. लोग कई बार पूछा करते हैं, महाराज से जो पर्व को विकृत नहीं करना है यह जो पर्व का आगमन हुआ. इस समय आपके पास क्या योजना है ? मैंने कहा- आत्म कल्याण की योजना है. माला मेरे पास पड़ी हैं जाओ और गिनो. उपवास करो पचक्खाण 298 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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