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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: अन्दर में यदि अज्ञान दशा का अंधकार हो वहां आत्मा की सुन्दरता को व्यक्ति कैसे पहचानेगा ? इसीलिए ज्ञानियों ने ज्ञान का प्रकाश दिया. उस प्रकाश में आत्मा के वैभव का पहले परिचय प्राप्त करें आज तक बाहर से प्राप्त किया गया, उपार्जन किया गया. अन्तर से आत्मा से प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं हुआ. भिखारी था. रास्ते पर एक स्थान पर खड़ा रहता था. बड़े दयालु बड़ा सज्जन स्वभाव का था. उस भिखारी में एक बड़ी विशेषता थी, यदि दो रुपया ज्यादा आ जाए तो किसी दूसरे भिखारी को खिलाकर आता महान गुण थे उसके अन्दर. मोहल्ले वाले उस भिखारी का भी आदर करते, जीवन के चालीस वर्ष निकल गए उस भिखारी के. एक जगह पर ही खड़ा रहता, वहीं याचना करता. लोग वहीं लाकर उसे देते. उसका सम्मान भी करते. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " एक दिन वह भिखारी मर गया. लोगों ने बड़े सम्मान पूर्वक उसके अन्तिम संस्कार किये. लोगों में एक भावना पैदा हुई कि इसके सम्मान के लिये यहां कुछ निर्माण किया जाए. उनकी स्मृति के अन्दर वह एक ऐसा दरिद्र नारायण था जो हृदय से सम्राट था, बाहर से भले ही दरिद्र हो. विचारों से बड़ा अमीर और श्रीमन्त था. उस व्यक्ति का एक सुन्दर स्मारक बनाया जाए. स्मारक बनाने के लिए जमीन की खुदाई की खुदाई करने के बाद बड़ा आश्चर्य, उसके नीचे खोदकर देखा गया तो न जाने कितने सोने चांदी के भण्डार मिले. लोगों ने कहा- देख यहीं पर खड़ा रहकर बेचारा जीवन के चालीस वर्ष तक भीख मांगता रहा. उसे नहीं मालूम था कि चार फुट नीचे मेरे पास अपार धन था. कैसा आश्चर्य ! उस भिखारी की दशा देखकर हमें भी यही विचार आता है. व्यक्ति जीवन पर्यन्त मांगता है. परमात्मा के द्वार पर गया तो भी मांगने के लिए, गुरुजनों के पास गया तो भी मांगने के लिए.. जहां गया, जिधर गया वह सारा जीवन ही मांगकर व्यतीत करता है. कुछ मिल जाए परन्तु अन्दर खोदकर नहीं देखता, आत्मा की गहराई में सोचता नहीं कि अन्दर अपार वैभव पड़ा है. बाहर की अपेक्षा अन्दर ही सब कुछ छिपा है. इन्दौर के बहुत बड़े श्रीमन्त थे सर हुक्मीचन्द जैन, थे. अचानक एक दिन उनके एक मित्र ने आकर कहा अन्दर से गहराई में से वैभव में से वैभव प्राप्त करने का हमारा कोई प्रयास नहीं. हमारा प्रयास हमेशा बाहर से प्राप्त करने का रहा. तीन बजाकर घड़ी स्पष्ट कहती है. कहां जाना है? जरा विचार कर लो यह वैभव तो तुम्हारे अन्दर छिपा है बाहर से कितना ही धन उपार्जन करो, पुत्र, धनसंपत्ति ये जाते समय तुम्हें आनन्द देने वाले नहीं. रुलाकर के तुझको विदाई देने वाली चीजें हैं. 291 - For Private And Personal Use Only दानेश्वर थे, खानदानी श्रीमन्त जीवन का अन्तिम समय बहुत Welc
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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