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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पाल www.kobatirth.org गुरुवाणी आती है. आप मौत को बदनाम न करें. मृत्यु अपने आने से पूर्व नोटिस देती है, सावधान करती है. माने कि बाल सफेद कर देती है. इस पहली वार्निंग से भी व्यक्ति सावधान नहीं होता, इसका जबाब बड़े गलत तरीके से देता है, खिजाब लगा लेता है, ताकि वह दिखे ही नहीं, मौत नजर नहीं आए. नहीं तो बार-बार मौत नजर आएगी. आने का दिन उसको दिखने लग जाएगा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " इन्सान कितना होशियार है, खिजाव लगा लिया ताकि दिखे ही नहीं, मौत छिप जाए. आंख में से तेल घटा देता है रोशनी कम हो जाती है. चिराग के अन्दर यदि तेल कम होगा तो रोशनी कम हो जाएगी. हमारी आदत चश्मा लगाएंगे. ताकि अच्छी तरह देख सकूं. कान के अन्दर बैटरी लूज हो जाए. हियरिंग एड लगाते हैं ताकि सुनाई दे जाए. हर तरह से दांत चला जाए. नोटिस तो कई बार आती है. दांत चले जाते हैं तो आर्टिफिशियल दांत लगा आते हैं. कहीं से भी मौत नजर नहीं आनी चाहिए. आंख से नहीं, बाल से नहीं, दांत से नहीं. वह बेचारी नोटिस दे देकर थक जाती है. आखिर तो उसे लेना ही पड़ता है. तब लास्ट वारण्ट आता है कि चल अगर इस तरह का विचार भी आ जाए तो संसार की प्रसन्नता चली जाए और आत्मा की प्रसन्नता आ जाए. अभी हमारी हालत यह है, आत्मा रोती है और मन प्रसन्न है, क्यों कि मन जड़ है, आत्मा चैतन्य है. वहां चैतन्य के अन्दर जो आनन्द हो चाहिए. आपकी दुर्दशा देख करके, मन की वासना देख करके, आत्मा रुदन करती है कि मेरी दशा क्या है. जहां मैं स्वतन्त्र होने के लिए आयी था वहां तो पराधीनता में जकड़ी गयी, भ्रम की जंजीरो से जकड़ी गयी ये मन की वासना को लेकर . कभी आपने सोचा है. यह हमारी अन्तर दशा है. आध्यात्मिक दृष्टि से आत्मा का परिचय प्राप्त करें. कैसी गुलामी ? पर की आसक्ति का परिणाम कैसा है ? स्व की कैसी दुर्दशा है ? घड़ी दो बजकर बहुत स्पष्ट कहती है कि दो में से एक में आओ, या तो शुद्ध संन्यासी बनो, सन्यास ग्रहण करो या शुद्ध सदाचारी, शुद्ध गृहस्थ बनो, मुझे सन्त तो बनना ही नहीं है. यदि सदाचारी सद्गृहस्थ बन जाएं तो भी धन्यवाद वह भी हमारी तैयारी आज नहीं है कि मैं अपने जीवन में सदाचारी बनूं जीवन का नव निर्माण करूं. जीवन का निर्माण आचार के द्वारा होना चाहिए. वह भी नही हो पाया. घड़ी तीन बजाती है, बार बार आपको जगाती है आत्मा में क्या है? बाहर के वैभव से कोई मतलब नहीं तुम्हारा. वैभव तुम्हारे अन्दर छिपा है. आत्मा के वैभव को तो देखो, ज्ञान, दर्शन, चरित्र आत्मा के अनंत गुण तो आपकी आत्मा में ही छिपा है. देख नहीं पाते मकान कितना भी सुन्दर अपना सजाया हो. यदि अन्दर अन्धकार है, क्या उसमें सुन्दरता दिखेगी? कोई चीज आपको सुन्दर नजर नहीं आएगी. 290 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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