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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी से दिया और कहा. हृदय से उदगार निकला. वह शब्द क्या था? स्वयं एक कविता थी. परमात्मा के समक्ष आकाश में हाथ करके कहा "भटकत द्वार-द्वार औरन के, कूकर आशाधारी" भगवन्! परमात्मन! मैं तेरे अनराग का उपासक! मोक्ष का यात्री बन करके आया. तेरा भक्त बन करके, तेरी उपासना करने वाला, यह आहार की वासना कैसी भयंकर, कि आनन्द घन को तेरा भजन छोड़कर के भोजन के पीछे भटकना पड़े. धर्मलाभ, धर्म लाभ आहार के लिए. याचना के लिए, तेरा भजन छोड़कर. यह तेरा उपासक है, तेरी उपासना में रहने वाला. भगवन्, इस वासना से मुक्त कर. आहार की लालसा से सदा के लिए मुक्त कर. अनाहारी होना मुझे चाहिए. जहां तूं बैठा है वह स्थान मुझे चाहिए. भगवन! तेरा भजन छोड़कर भोजन के पीछे भटकना पड़े. घर-घर कुत्तों की तरह रोटी के लिए भटकना पड़े. भगवन्, इस दशा से मुझे मुक्त कर. यह दशा मुझे नहीं चाहिए. समझ गए. महान योगी की कैसी अन्तर वेदना? कैसा उनके जीवन का दर्द? भिक्षा के लिए जाना था और उनकी आंख में आंसू. कुत्ते की तरह मेरी यह दुर्दशा. भगवन्, तेरा यह भक्त और यह दुर्दशा. भगवन्! इस वासना से मुक्त कर. जिस दिन यह पीड़ा आपको आ जाए. संसार में रह कर के संसार के अन्दर दर्द पैदा हो जाए. कि मुझे नहीं रहना है, एक कैदी के रूप में नहीं रहना है, विषय का गुलाम बनकर के मुझे नहीं रहना है, मैं तो स्वयं का सम्राट् बनने आया हूं. स्वयं का मालिक बन कर के यहां से जाऊंगा. सद्गति की एडवांस बुकिंग करने के लिए मैं यहां आया हूं. एक बार यह दृढ़ निश्चय हो जाए तो जीवन का उद्धार हो जाए. भोजन करने जब आनन्द घन बैठते उस समय उनके अन्दर से उद्गार निकलता. कबहुक काया कूकरी, करत भजन में भंग. क्या बताऊं यह शरीर क्या है? काया रूपी कुत्ती है. जब भौंकते हैं तो क्या शांति भंग होती है. भगवन्! मैं तेरा भजन करता हूं. पर यह शरीर ऐसा है, भौंकना शुरू करता है. कत्ते की तरह से अंदर से भौंकता है. टुकड़ा लाकर के डाल देता हूं पेट में तो यह भौंकना बन्द कर दे और आनन्द घन तेरा भजन करे. क्या मंगल भावना थी. खाने का यह कैसा तरीका था. वह आहार भी साधना का एक प्रकार बन जाता. मेरा भोजन भी भजन बनना चाहिए. यह आहार भी साधना का एक प्रकार बनना चाहिए. आत्मा के आरोग्य के लिये किया हुआ आहार पोषक बनना चाहिए. आत्मा का शोषक नहीं. आत्मा का नाश करने वाला नहीं. यह अंतर चेतना को एक बार समझा देना. घडी एक बजाकर आपको टंकार करती है. पहनना फैशन है. परंतु रोती 288 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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