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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी साथ ले करके आया, वे भी अवस्था आने पर अंगूठा दिखला गए. आंख ने कहा-मुझे देखना नहीं. मैं क्या मजदूरी करूं. सब ने कह दिया. दांत ने कहा-अब तो मैं रहूंगा नही. मैं क्या मजदूरी करूं. तुम्हारी आज्ञा का मैं कोई पालन नहीं करूंगा. निष्क्रिय बन जाते हैं. पांव ने कह दिया-मुझे अब नही चलना है. एक भी इन्द्रिय आपकी आज्ञा को मानने के लिये तैयार नही है. तो बाहर से आने वाली आपकी घरवाली हो (बच्चे हो) परिवार में कोई भी हों, साथ चलने को तैयार होंगे? शरीर भी यहां आपको छोड़कर जाना पड़ता है. क्योंकि उधार है. कर्म के द्वारा प्राप्त होता है. कभी जरा विचार तो करिये. घड़ी बडा स्पष्ट कहती है कि तुम अकेले ही हो. मालिक को अकेले ही जाना पड़ता है, कोई साथ है नहीं. मेरा शरीर भी नहीं, मेरा संसार भी नहीं, मेरा परिवार भी नहीं, कुछ भी मेरा नहीं. आचार्य भगवन्त ने आचार पर इसलिये बल दिया. मैं क्यों किसी के लिये पाप उपार्जन करूं? क्यों अपनी जीभ गंदी करू? परनिंदा दूसरों की चर्चा करने की अपेक्षा मैं स्वयं की चर्चा क्यों नहीं करूं? अपनी आत्मा का अवलोकन क्यों नहीं करूं? स्वयं ही आत्मा का निरीक्षण क्यों नहीं करूं? अपने भूतकाल को देखने का प्रयास क्यों नहीं करूं? भूतकाल के अन्दर मैंने क्या पाप किया है जिसकी सजा मैं लेकर के आया? कितना बड़ा संसार का सेन्ट्रल जेल मुझे मिला एक कैदी की तरह से, कर्म का गुलाम बनके मुझे जीना पड़ता है. एक-एक इन्द्रियों के अधीन मुझे रहना पड़ता है. जैसे इन्द्रियों का आदेश मिले उसके अनुसार करना पड़ता है. यह हमारी दुर्दशा है. कभी ऐसा चिन्तन, कभी ऐसा विचार आपमें आया? विचार आप को करना है. विचार के अन्दर जागृति तो होनी ही चाहिए. जब विचार में जागृति आ जाये, विचार की मूर्छा चली जाये, तब देखिये जीवन का आनन्द अलग प्रकार का होगा. वह कभी पराधीन नहीं बनेगा. वह जीवन का सुन्दर से सुन्दर उपयोग करेगा. कोई गलत बात नहीं होगी. वह नियन्त्रण आज हमारे पास नहीं करना पड़ेगा. आप समझ करके चलें कि कैसे इस इन्द्रियों की दासता से निकलें. आनन्द घन जी महाराज जैन योगी पुरुष थे, बहुत पहुंचे हुए महात्मा थे. अचानक भिक्षा के लिए दिन को बारह बजे निकले. उनकी आंख में आंसू आ गए. किसी गृहस्थ के द्वार पर खड़े थे और दोनों आंख से आंसू आने लग गए. साथ में दो चार गृहस्थ थे, उन्होंने देखा ये योगी हमेशा मस्त रहने वाले, चिन्त की प्रसन्नता में रहने वाले, इनको क्या हुआ. इनके रुदन का कारण क्या है? एक भक्त ने पूछा- भगवन्, आपके नेत्र में आंसू, किस दर्द के आंसू हैं? आनन्द घन जी महाराज जन्मजात कवि थे. सतत परमात्मा की सेवा, उपासना में रहने वाले, जगत की परवाह नहीं थी. वैसे मस्त योगी पुरुष ने भक्त के प्रश्न का जवाब बड़े सुन्दर ढंग - स 287 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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