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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - यह पाप कैसा होता है. सामान्य प्रकार का जिसे संज्वलन कहा जाता है. धार्मिक परिभाषा में, इस पाप के विचार इतने हलके होते हैं कि सहज के अन्दर, दोनों समय के सामान्य प्रतिक्रमण के अन्दर, हम उसे मानसिक विचारों के द्वारा स्वच्छ कर लेते हैं. परमात्मा स्मरण के द्वारा उसका शुद्धिकरण कर लेते हैं. इस पाप को क्या उपमा दी गई? जैसे पानी की लकीर खींची, थोड़े समय के अन्दर वह लकीर सूख जाती है. हवा से गर्मी में, उसी प्रकार रात्री संबंधी, दिवस संबंधी जो भी पाप हुए हों वह सामान्य क्रिया से और तप की गर्मी से सहज प्रकार में सूख जाते हैं. सामान्य प्रकार का होता है ___ कुछ ऐसी पाप प्रवृत्ति होती हैं. विचारों का कुछ ऐसा आग्रह होता है कि व्यक्ति कुण्ठित बन जाता है, दुराग्रही बन जाता है. सामान्यतया विचारों का आग्रह रखता है. यदि रोग बढ़ जाए तो उपचार और चिकित्सा में भी परिवर्तन करना पड़ता है. गोली कैप्सूल से काम नहीं होगा, तो इन्जेक्शन लेना पड़ेगा. हमारे यहां पाक्षिक प्रतिक्रमण रखा गया है. कोई ऐसा पाप यदि विचार में स्थिर रह गया हो. जो आपके आचार को नुकसान पहुचाता हो, पाप की ग्रंथि बंध गयी हो. पूर्वाग्रही बन गया हो, दुराग्रह उसमें आ गया हो, उससे पीड़ित आत्मा के लिए पाक्षिक प्रतिक्रमण है जो चतुर्दशी के दिन विशेष रूप से उपचार हेतु किया जाता है. आत्मा के आरोग्य को प्राप्त करने का यह उपाय है, उसके बाद व्यक्ति उसका प्रायश्चित करके अन्तर शुद्धि करता है. पाप मैं किसके लिए करूं, मुझे मेरे सामने अपनी मौत नजर आ रही है. यह सजा मुझे भोगनी पडेगी. यह समझ कर व्यक्ति अपने पाप को कमजोर बनाने के लिए इस प्रकार की सम्पर्क क्रिया करता है. और इन 15 दिनों तक आपके अन्दर जो कटुता है, जो विरोध की भावना रही, उसकी उपमा दी गई रेत पर यदि आप निशान करें तो वह कुछ घण्टा बना रहता हैं. इस प्रकार की कटुता को हमारे यहां पाक्षिक प्रतिक्रमण के अन्दर शद्धि के लिए उपचार बतलाया. तीसरा प्रतिक्रमण का स्वरूप “पाक्षिक प्रतिक्रमण" है. कछ ऐसे भी पाप हैं, कटता है जो विचार को लेकर पैदा होते हैं. वाणी के अन्दर, विवेक का अभाव होने से जो कलह पैदा हो जाता है. पूर्वाग्रह बंध जाए तो कई ऐसे विकार हैं, जो स्थिर रहते हैं, चार महीने तक, उनका समय और मर्यादा बतलाई चार महीने तक. अगर कोई ऐसा पाप संग्रह में रह जाए, वाणी के अन्दर गर्व उत्पन्न कर दे, वाणी को तुच्छ और विकृत बना दे. ऐसे पाप की शुद्धि के लिए चातुर्मासिक प्रतिक्रमण हैं. काफी समय आपको मिला. अवकाश फिर मिला. अवकाश में भी आप प्रमाद से मुक्त नहीं बनें. कर्म के दास बन करके अपनी आत्मा को पीडित किया. आत्मा के लिए आत्म दर्गति उपार्जित की. ऐसी परिस्थिति में चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में विशेष आराधना के द्वारा, प्रभु प्रार्थना के द्वारा, परमात्मा स्मरण के द्वारा, आपने उसका शुद्धिकरण किया. भगवन्त से उसका पश्चाताप प्रकट किया कि “भगवन् ! मैं अपराधी हूं, आपका क्षमा का पात्र हूं." चार महीने 265 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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