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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी न रहा तो वह वाणी दुर्घटना का कारण बनेगी, वही दुर्भावना परम्परा में आपकी दुर्गति का कारण बनेगी. संवत्सरी की आराधना करने का आशय यह है, आध्यात्मिक और तात्त्विक दृष्टि से आप विचार करिए. हमारे यहां पांच प्रकार का प्रतिक्रमण माना जाता है. प्रतिक्रमण हमारे यहां सबसे बड़ी धार्मिक क्रिया है. वह सारी धर्म साधना के अन्दर सबसे मूल्यवान क्रिया है. "प्रतिक्रमण” शब्द का अर्थ आपको मालूम है. शब्द के पीछे उसका अर्थ क्या है ? “प्रति” का मतलब “पीछे” और “क्रमण” का अर्थ होता है "हटना.” प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ पीछे हटना होता है. पापमय विचारों से रिवर्स में आना. संसार से निकलकर स्वयं की आत्मा में स्थिर बनना. इसका नाम प्रतिक्रमण है. ये धार्मिक अनुष्ठान हैं. जिस प्रकार से मुसलमानों की भक्ति और कीर्तन का महत्व है. हमारे यहा उससे भी अधिक महत्व प्रतिक्रमण का माना गया है. ये सारी क्रिया आत्मा को पाप से पीछे लाने की है. यह आपको मालूम है कि पांच प्रकार का प्रतिक्रमण रखा गया. पांच रखने के पीछे आशय क्या है? एक ही प्रतिक्रमण चलता. भूल दिन के अन्दर, रात के अन्दर, कभी भी हो सकती है. अठारह प्रकार का सेवन करने वाली आत्मा को झूठ भी बोलना पड़ता है. असत्य से, चोरी का उपार्जन भी करना पड़ता है. मस्खरी के अन्दर उपहास में कभी किसी आत्मा को दुख पहुंचाया हो. अन्याय से उपार्जन किया हो. गलत तरीके से उसे खर्च किया हो. मन में किसी के लिए गलत विचारा हो. पर निन्दा की हो आदि. इन अठारह प्रकार से व्यक्ति पाप का सेवन करता है यानी पाप का अर्जन करता है. वह अपने विचारों को अठारह प्रकार से आकार देता है. पाप के विचार वहां साकार बनते हैं और उसके अठारह प्रकार हैं. अब ये रात्रि के समय, सोते समय, अज्ञान दशा के अन्दर यदि विचार पूर्वक मैंने ऐसे पाप का सेवन किया हो. विचार में भी यदि पाप का प्रवेश हुआ हो. प्रातः काल प्रतिक्रमण के समय परमात्मा के साक्षी के अन्दर, प्रतिक्रमण के अन्दर, इन पापों का प्रायश्चित करना, यह रायसी प्रतिक्रमण है. राय का मतलब होता है प्रात: दिवस संबंधी. ' जो कुछ अपराध दिन में मैंने किया हो, रात्रि संबंधी तो पूर्ण हुआ, यदि दिन संबंधी कोई क्रिया इरादा पूर्वक की हो. कदाचित् उस पाप प्रवृत्ति के अन्दर मुझे आनन्द आया हो. पूर्व कृत कर्म के कारण, अज्ञानता से, मोह के अधीन हो, पाप किया हो. उन सभी पापों का प्रायश्चित मैं साधना के समय फिर से करता हूं. दिन के अन्दर जितने भी दोष लगे हों, पाप का सेवन हआ हो, इरादा पूर्वक या सहज उन पापों की आलोचना शाम को संध्या के प्रतिक्रमण में हम करते हैं, दो प्रतिक्रमण हो गया. 264 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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