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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी राजा फिर से वहां पर गये और राजा ने फिर से निवेदन किया - "भगवन! मेरे द्वार पर एक बार और आप कृपा करें. आपके आने से मुझे बड़ी प्रसन्नता मिलेगी. मेरी भावना पूर्ण बन जाएगी कि मैं आपको आहार का दान दूं." योगी पुरुष ने कहा - "जरा मेरे साथ कुछ भ्रमण करो, तुम्हारी बात पर भी विचार करूंगा.” राजा उसके साथ-साथ चलने लगा. जंगल को पार करके वह ऐसी जगह पर गए, जहां चमारों का मोहल्ला था. प्रतिदिन वहाँ चमड़े का काम होता था. जूता बनाया जाता था. उस चमड़े के अन्दर तो आप जानते हैं कैसी दुर्गन्ध होती है. जहाँ पर चमडे का काम होता है. उसे स्वच्छ किया जाता है. वहाँ बड़ी भयंकर दुर्गन्ध होती है. ___ परन्तु आग्रह था सन्त पुरुष के साथ घूमने का. सन्त पुरुष ने उनसे कहा कि “राजन्! ये बेचैनी क्यों हो रही है?" राजा ने कहा "इसका कारण महाराज यह है कि यहां भयंकर दुर्गन्ध है. यह दुर्गन्ध यहां ऐसी बसी हुई है कि रह पाना सम्भव नहीं. अतः महाराज क्षमा करिए. आप जल्दी यहां से चलिए." . __सन्त ने कहा – “यहां पर भी लोग रहते हैं. और अपनी जिन्दगी जीते हैं. वे तो कहीं जाने की बात नहीं करते.” राजा बोला – “महाराज आप जानते हैं. उनका जन्म ही यहां पर हुआ. बड़े भी यहां पर हुए, उनका तो संस्कार ही ऐसा बन गया कि दुर्गन्धमय वातावरण उन्हें चुभता नहीं. परन्तु सहन नहीं कर सकता. जो यहां रहते हैं, उनकी तो आदत हो गई है इसीलिए उनको दुर्गन्ध सताती नहीं." ___महात्मा ने कहा – “तुम भी राजमहल में जन्में. राजमहल में बड़े हुए. उस वातावरण में तुम पले, तुमको क्या मालूम कि विषय की दुर्गन्ध कैसी होती है. वह तो हमारे जैसे साधुओं को ही मालूम पड़ता है, इसीलिए उस दिन मैंने मना किया कि राजमहल मुझे ले जाकर क्या करेंगे. तुम्हारे आग्रह में चला गया. परन्तु वहां से तुरन्त मुझे लौटकर आना पड़ा. वहाँ विषय की दुर्गन्ध थी. पुण्यशाली आत्माओं को विषय की दुर्गन्ध मालूम नहीं पड़ती जैसी कि संयमी आत्मा को, यह विषय की दुर्गन्ध उन्हें असह्य लगती है अतः वह वहाँ रहना नहीं चाहता.” हमारी आदत बन गई है. हम ऐसे अनादिकालीन संस्कार लेकर आएं है. विषय के अन्दर मग्नता ले कर हम आए हैं. इसीलिए साधकावस्था के अन्दर उस प्रकार का आनन्द हमें आता नहीं, सारी इन्द्रियों को हमने पाप का प्रवेश द्वार बनाकर रखा है. जिस दिन इन्द्रियों पर हमारा निग्रह हो जाएगा, इन्द्रियों पर हमारा नियन्त्रण आ जाएगा, इन्द्रियां धर्म का प्रवेश द्वार बन जाएंगी तब कोई समस्या नहीं रहेगी. प्रतिदिन पाप का आगमन तो होता हैं, पाप हम होलसेल में करते हैं, पुण्य रिटेल में करते हैं. अतः पाप की मात्रा बढ़ती चली जाती है. रिटेल के अन्दर व्यापार करने वाला करोड़पति कब बनेगा? वह तो उसके लिए मात्र एक कल्पना रहेगी. पुण्य कार्य,धर्म कार्य जब हमें रिटेल में ही करना है. सारे दिन में से एक घण्टा, और जो कुछ करना है तो 262 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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