SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 0 -गुरुवाणी: के लिए कितना भयंकर पाप करना पड़ता है. जगत को प्राप्त करने के लिए न जाने कितने अनाचार का सेवन करना पड़ता है. कितना घोर दुरुपयोग हम करतें हैं, इस हाथ का अपनी लेखनी के द्वारा. असत्य का प्रयोग करके यदि हम धन उपार्जन करें तो वह कैसे शान्ति देने वाला बनेगा? धर्म का जो साधन है, उस साधन का यदि दुरुपयोग किया जाए. सरस्वती के साधन का यदि दुरुपयोग किया जाए, तो वह दर्द और पीड़ा का कारण बनता है. हमने कभी इस तरह से सोचा ही नहीं, लिखकर असत्य की वकालत करके, अप्रामाणिकता से जीवन चलाकर, कितना हमने अपनी आत्मा के लिए अनर्थ उपस्थित किया है, कभी उसका हिसाब हमने देखे ही नहीं. पुराने जमाने में चौपड़ा रखा करते थे. हिसाब किताब के लिए दुकान पर. आपको मालूम होगा काली स्याही से, होल्डरों से चौपड़ा लिखा जाता था. दिवाली के दिन मुहूर्त करते समय उसी का प्रयोग किया जाता था. वह मांगलिक माना जाता है. हमारी परंपरा है. तो चौपड़ा लिखते-लिखते हमें मालूम है, उस समय ब्लोटिंग पेपर नहीं होता था, रेती रखी जाती थी. धूल सूखी हुई, यदि कहीं ज्यादा स्याही जम जाए तो उसे डाल देते. वह सूख जाता था. स्याही और कलम ने आपस में मिलकर बड़ी मित्रता की, स्याही ने कहा- परोपकार पूर्वक अपना जीवन अर्पण कर देना, यह मेरी भावना है. तुम मुझे सहयोग दो. कलम ने कहा-ठीक है, मैं भी घिस घिस कर अपना प्राण अर्पण करने को तैयार हूँ, दोनों के अन्दर बलिदान की बड़ी सुंदर भावना रही कि अपना बलिदान करके लोगों का हम पेट भरें, लोगों के जीवन निर्वाह करने में मदद करें, परिवार का भरण पोषण करने में सहायक बनें. आप देखिए! दोनों में कैसी सुंदर अपूर्व मित्रता है. कलम जैसे ही स्याही में डुबोया जाता है, स्याही का साथ मिलता है. दोनों में बड़ी अच्छी मित्रता रहती है. जैसे-जैसे कलम आगे चली, उसके पीछे स्याही सूखती हुई चली जाती है. मित्र के वियोग के अंदर, कवि की बड़ी सुंदर कल्पना है, वह स्याही अपना प्राण दे देती है. मेरा मित्र आगे चला गया उसके वियोग में मेरा जिन्दा रहना कोई मूल्य नहीं रखता. स्याही सूख जाती है, मर जाती है. कलम आगे चली जाती है. कई बार आपने देखा होगा, लिखते-लिखते दो चार लाइन हम नीचे आ जाएं और यदि कहीं स्याही जीवित रह जाए, सूखे नहीं. ऐसे में यदि पन्ना बदलना पड़े तो क्या करते हैं? वह धूल लेकर ऊपर डाल देते हैं. वह धूल क्यों डालते हैं? तेरा मित्र तुझे छोड़कर कहां चला गया, मित्र के वियोग में तू अभी तक जीवित है. तेरे मुंह पर धूल पड़े. 246 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy