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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी मुझे चाहिये.” कवि गंग ने कहा – जनाब! आप फरमाइये, उसकी पादपूर्ति मैं कर देता हूं." __"सब मिल आस करो अकबर की"। ये जितने भी यहां पर बैठे हैं सब मुझसे आशा रखो, मैं तुम्हारी इच्छाओं को पूर्ण करूंगा. उसके मन में ऐसी वासना आ गई कि जैसे मैं ही पैगम्बर हूं या अवतारी पुरुष हूं और मेरा नाम लोग लें और मेरे आशीर्वाद से परिपूर्ण बनें. ऐसा होता है. कई बार बड़े आदमियों के दिमाग में ऐसी बात आती है. एक दिन अकबर के दिमाग में बात आ गई. पंडितों को बुलाकर के कहा - याद रखो. तुम लोग घर पर रामायण पढ़ते हो. मेरी इच्छा है एक अकबर के नाम से रामायण बनाई जाए. बीरबल को बुलाया और कहा ये आपकी जवाबदारी है. "अकबरी रामायण" को तैयार करना है. "हजूर! समय तो चाहिये. एक दिन में कोई तैयार थोड़ी ही हो जाएगी. रामायण को तैयार होने में कई महीने लग जायेंगे." अकबर ने कहा – जो खर्च आये, वो मुझसे से ले जाना." छः महीने निकल गये, एक दिन दिमाग में आया, पूछा -- “बीरबल! मेरी अकबरी रामायण तैयार हो गई. जगत में उसका प्रचार होना चाहिये." ___हजूर! तैयार है मगर एक बात पूछनी बाकी है. उसे बेगम साहब से पूछकर के आता हूं बाकि पूरी रामायण तैयार है." वह बुद्धिशाली व्यक्ति था. अन्दर जहां बेगम साहिबा थीं वहां गया. बड़ा सा पोथा लेकर के कपड़े में लपेट करके गया और कहा - "आज बादशाह जनाब का एक आदेश है कि अकबरी रामायण पूरी करना है और उसके अन्दर एक प्रश्न हैं जिसका जवाब मझे आप से चाहिये." बेगम ने कहा – क्या बीरबल! कौन सा जवाब चाहिये? "हजूर! गुस्ताखी माफ करना राम की रामायण सीता के कारण पैदा हुई थी, अब अकबरी रामायण तो मैंने पूरा बना लिया है. उसका सम्पूर्ण जीवन वृत्तान्त तो मैंने इसमें लिख दिया है परन्तु एक बात पूछनी है कि सीता का हरण तो रावण ने किया था परन्तु बेगम साहिबा माफ करना! आपका किस तरह अपहरण हुआ है? बेगम गुस्से में आ गई सारा पोथा उठा लिया. अन्दर ले जाकर चूल्हे में डाल दिया, भाड़ में जाये तेरी रामायण पूरा जला करके राख कर दिया. क्या बात तुम यहां करने आये हो? क्या बदतमीजी करते हो?" बीरबल को इतना ही चाहिये था. वह दरबार में गया और अकबर ने पूछा कि क्या मेरी रामायण तैयार है? “हजूर! छ: महीने मेरे पानी में गये." “क्या हुआ? 188 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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