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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी जाता है, विचार कीजिए. अनन्त शक्ति को नमस्कार किया जाता है, जहाँ परमात्मा तीर्थकर हों, जिसका रोज आप स्मरण करते हैं, प्रतिदिन आप जिसका जाप करते हैं, प्रतिदिन जिनकी आराधना करते हैं. ____ मैं यह जानना चाहता हूं कि आप मन से कहां-कहां भटकते हैं. मन को दुराचारी बना रखा है. मन के विचार से आत्मा का रक्षण करें जो मन परमात्मा को समर्पित कर दिया है, उसमें दूसरों को याद करना, दूसरे का स्मरण करना, यह वैचारिक व्यभिचार और अपराध है. जीवन के अन्दर जरा झांक कर देखिए, कहां-कहां जाते हैं. जो परमात्मा तीर्थकर की कृपा से नहीं मिला, पूर्ण परमेश्वर की कृपा से नहीं मिला, फिर जगत में किसी की ताकत नहीं कि लाकर के आपको दे दे. अरिहंत प्रभु की कृपा से ही आत्मा का सम्पूर्ण हित संभव है. अनन्त सिद्ध जहां पर मौजूद हैं, जिनका हम प्रातः काल स्मरण करते हैं, जो परम उपकारी हैं, जिनके स्मरण से ही कल्याण होगा, उनको भूल कर के जगत को याद करें तो वह व्यर्थ होगा. किसी देवी देवता की ताकत नहीं कि आपको लाकर रुपया पैसा दे दे. आपका विश्वास है. मैं कोई विश्वास के अन्दर रुकावट पैदा नहीं करता, आपकी श्रद्धा पर प्रहार नहीं करता. परन्तु मांगना तो परम पिता परमेश्वर जी से मॉगो. जगत में भिखारी बन के जीने की क्या जरूरत. एक बार एक बादशाह मस्जिद में खुदा की नमाज़ अदा कर रहे थे. उसी समय बाहर एक फकीर आकर बैठ गया, सोचा कि कुछ माँगूगा. जब वह बादशाह नमाज पढ़कर बाहर निकले तो उन्होंने फकीर को उसके हाथ में अशर्फी रख दी. फकीर ने उस अशर्फी को नाली में फेंक दिया. इस तिरस्कार पर बादशाह नाराज होकर पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया. फकीर बोला-जनाब क्षमा करें. मैंने सोचा था कि आप कोई बादशाह होंगे और अन्दर से आने पर कुछ दान मॉगूग रन्तु मैंने देखा कि आप तो मुझसे भी बड़े भिखारी निकले क्योंकि आप नमाज पढ़ते समय खुदा से धन दौलत और सन्तान के लिए प्रार्थना कर रहे थे. अतः मैंने निश्चय किया कि यों तो मैं भी बहुत बड़ा अपने मन का बादशाह हूँ. आप इस तरह स्वयं भिखारी हैं तो आपसे मुझे किसी दान की अपेक्षा नहीं हैं. याद रखिये परमात्मा के द्वार पर मांगने जाना नहीं चाहिए, क्योंकि वहां तो बिना मांगे ही सब कुछ मिल जाता है. याचना या मांग लेना एक प्रकार का अविश्वास है. कभी ऐसा अविश्वास लेकर के आप परमात्मा के द्वार पर मत जाना, परिपूर्ण विश्वास के साथ जाना. ऐसा विश्वास नहीं कि जरा सी बात, जरा सी कसौटी पर, हम चलायमान हो जाएँ. महान कवि गंग सम्राट अकबर के दरबार में था. वह नवरत्नों में से एक था और अचानक एक दिन उससे सम्राट ने कहा - "मेरी एक समस्या है. तुम समाधान कर दो. " उसने कहा - "जनाब होगा जो जरूर करूंगा.” "मैं एक समस्या देता हूं उसकी पादपूर्ति । 187 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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