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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra $6 www.kobatirth.org गुरुवाणी एक भाव पैदा हुआ कि धन्य है इस पुण्यात्मा को हमारे देश के नागरिक को इसने भले ही गलत कल्पना की होगी पर उसका शिष्टाचार कितना मानवतापूर्ण है कि वह मुझे अपना कार्ड देकर आमन्त्रित कर रहा है. पैसे का कितना सुन्दर उपयोग यह कर रहा है ऐसा विचार उसके अन्दर आया और उसके शिष्टाचार व्यवहार से उसके विचार में परिवर्तन आ गया और मन में सोचा कि मैं कभी न कभी ऐसी पुण्यशाली आत्मा का दर्शन करू. उसके परिचय में आऊं. उसके साथ रह करके अपने जीवन का निर्माण करूं. यह भावना उसके अन्दर पैदा हुई. परन्तु बहुत बड़ा व्यक्ति था. बहुत कम्पनियों का डायरेक्टर था. और अमेरिका में समय कहां. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूर रहने वाला व्यक्ति तो चला गया. उसने दस डालर और कार्ड दोनों अपने पास रखा. मित्र की स्मृति में रखा कि एक महामानव मुझे मिला था. यह व्यक्ति भी चला गया. यह भी बहुत धनाढ्य व्यक्ति था. कई कम्पनियों का मालिक भी था. अपने मित्र को लेने गया था. ऐयरपोर्ट लेकर के आ गया. छः महीने निकल गये और वे एक दूसरे को मिल नहीं पाये और न ही कोई सम्बन्ध कायम हुआ. छः महीने के बाद कोई ऐसा ही संयोग कि परोपकार की वृत्ति वाला व्यक्ति हानि में आ गया करोड़ों डालर का नुकसान इसकी कम्पनी को लगा. वहां के व्यापारी पत्रों में न्यूयार्क टाइम्स आदि में समाचार आया कि यह बड़ी कम्पनी लॉस में जा रही है. दो हज़ार कि. मी. दूर रहने वाले व्यक्ति को जब समाचार आया बड़े ध्यान से इसने पढ़ा. उसको कार्ड दिया गया था. इस कम्पनी का नाम उस कार्ड में था. मन में सोचा कि शायद यह व्यक्ति तो नहीं है, जिसने बिना मांगे दस डालर मेरे पाकेट में रखा था. मानव का वह देवदूत मुझे कार्ड देकर गया था कि मेरे पास आना मैं हर प्रकार से सहयोग दूंगा. परन्तु तुम मरकर ईश्वर का गुनहगार मत बनना... कान के अन्दर वह आवाज गूंजने लगी. अपने सेक्रेटरी को कह करके वह कार्ड मंगवाया, कार्ड देखा तो वही कम्पनी थी. - पंद्रह-बीस करोड़ डालर का नुकसान था बड़ी कम्पनी थी उसका यह मैनेजिंग डायरेक्टर था. मन में समझ गया कि सज्जन व्यक्ति था और मुश्किल में आ गया. किसी कारण इस कम्पनी को नुकसान हो गया मेरा नैतिक कर्तव्य है कि सहयोग देकर इस कम्पनी को बचाऊं. मेरे ऊपर इसने जो उपकार किया, विचारों के द्वारा जो मेरे जीवन का निर्माण किया है, मैं जाकर के उपकार का बदला चुकाऊं उसे नहीं मालूम कि मैं तो घूमने निकला था. आराम के लिए जा रहा था. थोड़ी मानसिक विश्रान्ति के लिए गया था. वहां हवा खाने उतरा था. मैं मरने के लिए नहीं जा रहा था. उसने तो गलत समझ लिया था. उसे नहीं मालूम कि मैं बहुत बड़ी कम्पनी का डायरेक्टर हूं बहुत सी कम्पनियों का मैं निजी मालिक हूं. उसने अपना टेलिफोन उठाया और उस नम्बर पर टेलीफोन किया मिलने के लिए समय मांगा. परन्तु वह व्यक्ति इतना व्यस्त था, इतना तनावग्रस्त 177 For Private And Personal Use Only F
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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