SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी S देवताओं ने बंदी बनाया. हाथ पांव बांधकर के लाए सभी बैठे थे. ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी, पूरी पैनल बैठी थी. वहां पकड़ कर ले आए, ये मफतलाल है, इसको जितनी सजा दी जाए उतनी कम है. ब्रह्मा जी ने आदेश दिया. उसको तो रौरव नरक में भेजना है, भगवन्, तैयार. तुम समझ गये अभी अभी तुम को जाना है. भगवान आपके द्वार में न्याय है, अन्याय नहीं. आपने न्याय दिया. मैं स्वीकार करता हूं. ज़रा भी अनादर करने वाला नहीं. आप जो सजा देंगे, मैं स्वीकार करूंगा. पर मेरी बात सुनेंगे क्या ? यह नहीं होना चाहिए कि सरासर अन्याय जाए दुनिया में आदमी कहां जाएंगे. मेरे मन में यह शंका रह जाएगी. बोलो क्या है ? भगवान और कुछ नहीं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भगवान मेरी बात सुन लीजिए और न्याय दीजिए. आपके साधु संत, सन्यासी जो मृत्यु लोक में आपके प्रतिनिधि हैं. घर-घर घूमते हैं रोज प्रवचन देते हैं, और रोज़ कहते हैं साधु सन्तों का दर्शन करो, परमात्मा का दर्शन करो. वैकुण्ठ मिलेगा, दुर्गति का नाश होगा, चिल्ला-चिल्ला कर प्रवचन में बोलते हैं. मुझे कोई आपत्ति नहीं, उनका कथन सत्य है और कुछ नहीं, आपके इस धर्मराज के बही में गलत नहीं लिखवाऊँगा. मैं यहाँ पर आपसे कोई गलत कार्य करवाने नहीं आया. बस इतना ही लिखना है, जो सच है, कि मफतलाल ने यहां ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को साक्षात् देखा, साक्षात् उनके दर्शन किए और यहां से मर कर नर्क में जा रहा है. ऐसा कैसे लिखा जाएगा ? तो फिर यह तो सच बात है. मेरा सत्याग्रह है. मैंने कोई गलत तो लिखवाया नहीं. वहां तो नाम लेने से वैकुण्ठ मिलता है, यहां तो साक्षात् स्वर्ग में आपको देख रहा हूं. आप इतना ही लिखो कि मैंने दर्शन किया और यहां से नरक के लिए ट्रांसफर हुआ. ब्रह्मा जी, विष्णु जी सब विचार में पड़ गये कि क्या करना चाहिए ? उसने कहा भगवन आप विचार करिए, मैं बैठा हूं आज तक मफतलाल ऊपर बैठा है, अभी तक ब्रह्मा जी, सोच नहीं पाए कि किस प्रकार से उसका ट्रांसफर किया जाए. व्यक्ति अपनी बुद्धि का उपयोग बड़े विचित्र प्रकार से करता है. परन्तु बुद्धि का उपयोग • परोपकार के लिए करना है. अब इस पर आगे चिन्तन करेंगे. सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम् 噩 159 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy