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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: - - - महामन्त्री स्वयं गए, गांव के पंचों को इकट्ठा किया, हाथ जोड़कर निवेदन किया, एक जैन श्रावक होने के बाद जिसकी तलवार से सारी दुनिया डरती थी. सड़सठ बार युद्ध में गया. विजयी होकर आया कभी हारा नहीं राष्ट्र की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझता था. यह उसका इतिहास इतना परोपकारी व्यक्ति कि राष्ट्र रक्षा के लिए राज्य पर आक्रमण हुआ तो अपनी प्रजा, अपने धर्म अपनी संस्कृति के रक्षण के लिए वह पीछे नहीं हटा. अहिंसा का यह मतलब मत लेना कि कायर कहलाओ. कुमारपाल बड़ा अहिंसक था. परन्तु युद्ध के अन्दर कभी हार के नहीं आया. हम किसी पर आक्रमण नहीं करते. हमारी वह भावना भी नहीं होती. उस समय हमारी रक्षण भावना होती है. जो प्रजा मेरे आश्रित है, मैं उनका रक्षण करने वाला बनूं. परिणाम रक्षण का होता है, वहां परीक्षण का परिणाम नहीं होता. युद्ध में मात्र अत्याचारियों का प्रतिकार किया जाता है, अत्याचार नहीं. प्रतिकार होता है कि मैं अपने राष्ट्र का रक्षण करूं. प्रजा के प्रति विश्वास का घात न हो जाए. मेरे प्रमाद से हमारा राज्य नैतिक या धार्मिक दृष्टि से पतन की तरफ न चला जाए. रक्षण करना मेरा कर्तव्य है. वे कर्त्तव्य समझ करके युद्ध में जाते हैं, और युद्ध में भी प्रतिकार की नीति होती है, अत्याचार की नहीं, रक्षण की भावना होती है, किसी को खत्म करने की नहीं. महाजनों ने कहा कि हम भोजन नहीं स्वीकार सकते. क्या कारण है? कारण और कुछ नहीं. सांचोर में रहने वाले पूरे महाजन कर्जदार हैं. किसी के पास पैसा नहीं. लेने-देन का व्यवहार चलता था, उधार दिया था. प्रजा इतनी गरीब हो गई, दो तीन वर्ष से फसल नहीं हुई. हम वसूली नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर हम आपके यहां भोजन करने आएं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी आपके श्री संघ की सेवा हेतु आपको भोजन पर आमंत्रित करे, और दुष्काल के परिणाम स्वरूप हम आज ऐसी परिस्थिति में नहीं हैं, इसी भाव से कि जब हम भोजन नहीं दे सकते तो भोजन करने के लिए आमन्त्रण कैसे स्वीकार कर सकते हैं. बात महामन्त्री के गले उतर गई. क्या ऐसी भयंकर स्थिति है? मैं तैयार हूं. जितना अनाज चाहिए यहां के गरीबों के लिए मैं उसकी व्यवस्था करता हूं. वह मैं अपने राज्य से लाकर दूंगा. महाजनों को बुलाया और कहा आप भोजन नहीं लेंगे हमारी लानी तो लेंगे. लानी घर पर दी जाती है. हरेक के घर एक एक लानी.दी जाती है. प्रभावना के रूप में, प्रभावना लेने में कोई आपत्ति नहीं. अनाप-शनाप संपत्ति थी. उसने महाजनों के घर में एक-एक लाख रुपया प्रभावना के रूप में दिया लानी, संघ पूजन. ग्यारह सौ घर थे. महाजन प्रसन्न हो गए. प्रभावना थी स्वीकारना पड़ा, वचन बद्ध थे. वहां जितने भी दीन-दुखी थे, सब के लिए अनाज की व्यवस्था की. कहा कि पहले लोगों की पेट पूजा कराई जाए. उसके बाद परमात्मा - - हना 156 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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